पैसे का महत्व क्यों है? एक प्रभावशाली शोध में कहा गया कि पैसा एक उपकरण (tool) की तरह काम करता है, जिससे व्यक्ति वह चीजें प्राप्त कर सकता है जो वह चाहता है। लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। उपकरण एक खास काम के लिए होते हैं। जैसे, आरी (saw) का उपयोग चीज़ों को टुकड़ों में काटने के लिए होता है परन्तु पैसा ऐसा नहीं है। इसे खासतौर पर सब्ज़ी, चाय, फल या अन्य वस्तुओं के आदान-प्रदान के लिए नहीं बनाया गया। यह एक “सर्व-उपयोगी उपकरण” (all-purpose tool) है, जो इसे किसी संसाधन की तरह बनाता है न कि केवल एक उपकरण की तरह।
एक और अंतर यह है कि असली उपकरण आपको सीधे काम करने में सक्षम बनाते हैं। उपकरण का उपयोग करने के लिए यह मायने नहीं रखता कि दूसरे लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं। लेकिन पैसा पूरी तरह दूसरों की मान्यता पर निर्भर करता है। जब तक लोग इसे मूल्यवान और चीज़ों के आदान-प्रदान योग्य नहीं मानते, तब तक यह सिर्फ कागज़ और धातु के टुकड़े हैं। पैसे की उपयोगिता लोगों के बीच साझा किए गए विश्वास पर आधारित है।
पैसा किस प्रकार का संसाधन है? यह एक ऐसा साधन है जो सामाजिक व्यवस्था के माध्यम से आपके पर्यावरण पर नियंत्रण करता है। यह आपको इस व्यवस्था से अपनी इच्छित चीजें प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। इस तरह, पैसा व्यक्ति को दूसरों की स्वीकृति और अच्छे स्वभाव पर कम निर्भर बनाता है। यह दूसरों के माध्यम से अपनी इच्छाओं को पूरा करने का साधन प्रदान करता है। मनुष्य प्रकृति और संस्कृति को एक असाधारण तरीके से जोड़ते हैं।
मनुष्य एक जीव हैं जो अपनी जरूरतें और इच्छाएं सामाजिक व्यवस्था (संस्कृति) के माध्यम से पूरी करते हैं। संस्कृति मनुष्य की जैविक रणनीति है। प्रकृति में सफलता का मतलब जीवित रहना और संतान पैदा करना है। अधिकांश जानवर अपना भोजन सीधे प्राकृतिक वातावरण से प्राप्त करते हैं, जबकि मनुष्य अपना भोजन सामाजिक व्यवस्था से लेते हैं।
पैसा इस सामाजिक व्यवस्था में एक विशेष शक्ति रखता है। उदाहरण के लिए, किराने की दुकान, रेस्तरां या पिज्जा डिलीवरी कंपनी से भोजन पाने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है। कभी-कभी आप मुफ्त में भी भोजन पा सकते हैं, जैसे किसी के घर डिनर पर जाकर या अपने माता-पिता द्वारा बनाए गए भोजन को खाकर। पैसा एक ऐसा संसाधन है जो सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। यह एक सार्वभौमिक सामाजिक उपकरण की तरह काम करता है, जिसे सामाजिक व्यवस्था पहचानती और स्वीकार करती है। संपन्नता की बुद्धिमता हममें से अधिकतर लोग मानते हैं कि संपन्नता (affluence) बाहरी कारणों का परिणाम है। लेकिन चौंकाने वाली सच्चाई यह है कि यह एक खास सोच पर आधारित होती हैः “संपन्नता की बुद्धिमता” (Affluence Intelligence)। यह ऐसा मानसिक दृष्टिकोण है जो न केवल लोगों को धनवान बनाता है बल्कि उन्हें गहराई से संतुष्ट भी करता है।
संपन्नता की बुद्धिमता
हममें से अधिकतर लोग मानते हैं कि संपन्नता (affluence) बाहरी कारणों का परिणाम है। लेकिन चौंकाने वाली सच्चाई यह है कि यह एक खास सोच पर आधारित होती हैः “संपन्नता की बुद्धिमता” (Affluence Intelligence)। यह ऐसा मानसिक दृष्टिकोण है जो न केवल लोगों को धनवान बनाता है बल्कि उन्हें गहराई से संतुष्ट भी करता है। संपन्नता की बुद्धिमता के चार प्रमुख क्षेत्र हैं:
- प्राथमिकताएँ (Priorities): ये आपकी वित्तीय और जीवनशैली से जुड़ी पसंद को दिशा और ऊर्जा देती हैं।
- व्यवहार (Behaviors): ये आपके काम करने के तरीके हैं जो आपकी प्रगति को बढ़ावा देते हैं या रोकते हैं।
- दृष्टिकोण (Attitudes): ये पैसे और जीवन के प्रति आपकी मान्यताएँ और सोच हैं, जो जागरूक (conscious) और अवचेतन (unconscious) दोनों हो सकती हैं।
- वित्तीय कुशलता (Financial Effectiveness): यह वित्तीय योग्यता और सहजता का संयोजन है, जिससे आप पैसे के साथ सक्षम और सुरक्षित महसूस करते हैं।
तो सभी में यह क्षमता होते हुए भी कुछ लोग इसे क्यों हासिल कर पाते हैं और कुछ नहीं? हम जानते हैं कि हमें क्या खुशी और संतुष्टि देता है (संपन्नता का एक अहम हिस्सा), लेकिन हम इसे नज़रअंदाज़ करते हैं या इसे पाना मुश्किल मान लेते हैं। आज के आर्थिक माहौल में यह और भी चुनौतीपूर्ण लगता है। रोज़ मीडिया, सहकर्मियों, और दोस्तों से बुरी आर्थिक खबरें सुनकर हम हताश महसूस कर सकते हैं।
ऐसा लगता है जैसे हमारी वित्तीय नियति हमारे हाथ से निकल गई हो। यह असहायता की भावना हमें मानसिक और आर्थिक तौर पर कमजोर कर सकती है। लेकिन याद रखें, बाहरी परिस्थितियाँ जितनी शक्तिशाली हैं, आप भी उतने ही शक्तिशाली हैं। संकटों में अवसर छिपे होते हैं, जो हमें अपने आप को और अपनी सोच को नए दृष्टिकोण से देखने की चुनौती देते हैं। यह समय अपनी पैसे के साथ संबंध, अपनी प्राथमिकताएँ, रणनीतियाँ और विकल्पों को दोबारा समझने और सुधारने का है। आपके अंदर संपन्नता की शक्ति है, इसे पहचानने और उपयोग करने का यह सही समय है।
पैसा, दान और सुख
स्वीडन की लिंकॉपिंग यूनिवर्सिटी के हाजदी मोशे और उनकी टीम द्वारा किए गए एक शोध में कहा गया, “पिछले अध्ययनों से पता चला है कि दूसरों पर पैसा खर्च करना खुद पर खर्च करने से ज्यादा खुशी देता है।” इस शोध में 788 प्रतिभागियों ने एक खेल में पैसे जीते, जिनमें से कुछ पैसे वे दान कर सकते थे।
परिणामः
जिन लोगों ने पैसे दान किए, वे उन लोगों की तुलना में अधिक खुश थे, जिन्होंने पैसे अपने पास रखे। सक्रिय विकल्प (active choice) चुनने वालों में नकारात्मक भावनाएँ (जैसे असमंजस या पछतावा) ज्यादा थीं, जबकि निष्क्रिय विकल्प (passive choice) लेने वालों में ऐसा कम देखा गया। जब दूसरों के लिए खर्च करने का निर्णय प्रतिभागियों के लिए पहले से तय ही था, तो वे सबसे अधिक खुश थे। हालांकि, एक खास स्थिति में सक्रिय रूप से दान का विकल्प चुनने से सबसे ज्यादा खुशी मिली। इसका कारण यह हो सकता है कि यह निर्णय किसी उच्च उद्देश्य से जुड़ा होता है। पैसा, खर्च और खुशी के अन्य शोध बताते हैं:
- कमाई से ज्यादा खर्च करने की क्षमता खुशी को बढ़ाती है।
- अधिक आय जीवन से संतुष्टि बढ़ाती है, लेकिन यह क्षणिक खुशी (moment-to-moment happiness) पर अधिक असर नहीं डालती।
- ज्यादा कमाने वाले लोग अक्सर अधिक खुशी महसूस करते हैं, लेकिन उनकी खुशी की तीव्रता (intensity) कम आय वाले लोगों से अलग नहीं होती।
इन शोधों से यह साफ होता है कि पैसा खुशी का कारण बन सकता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कैसे और कहां खर्च किया जाए। पैसा और खुशी का रिश्ता हर कोई खुश रहना चाहता है, लेकिन खुशी पाने के रास्ते अलग-अलग होते हैं और ये हमेशा सफल नहीं होते।
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पैसा और राष्ट्रीय खुशीः
जब हम अलग-अलग देशों के लोगों की औसत जीवन संतुष्टि की तुलना करते हैं, तो देश की संपन्नता (GNP) उनके नागरिकों की खुशी का मजबूत संकेतक होती है। आमतौर पर, सबसे गरीब देश सबसे कम खुश और सबसे अमीर देश सबसे अधिक खुश होते हैं। पैसा खुशी का अकेला कारण नहीं है, और अत्यधिक भौतिकवाद की आलोचना के अच्छे मनोवैज्ञानिक और नैतिक कारण हैं। लेकिन पैसा भी मायने रखता है, भले ही थोड़ा। जैसा कि Mae West ने कहा था, “मैंने अमीर और गरीब दोनों जीवन जिया है; और मानो अमीर होना बेहतर है।”
अमीरों को हम “बुरा” मानते हैं – हम अक्सर अमीरों को बुरा या निष्ठुर समझते हैं। एक पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के अध्ययन के अनुसार, अधिकांश लोग अधिक मुनाफे वाली कंपनियों और संस्थानों को अधिक बुरा मानते हैं। जब लोगों से विभिन्न कंपनियों और उद्योगों का मूल्यांकन करने को कहा गया, तो उदार और रूढ़िवादी दोनों ने अधिक मुनाफा कमाने वाली संस्थाओं को अधिक बुरा माना। यह उनके वास्तविक कार्यों से स्वतंत्र था। अमीर लोग ईर्ष्या और अविश्वास का कारण बनते हैं। साइंटिफिक अमेरिकन के अनुसार, लोग कभी-कभी अमीरों की मुश्किलों में खुश भी होते हैं। गरीब लोग भी अपने स्टीरियोटाइप से जूझते हैं, लेकिन अमीरों के बारे में उनकी धारणा अक्सर नकारात्मक होती है।
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धन और लत के बीच संबंध
पैसा सीधे तौर पर नशे या लत का कारण नहीं बनता, लेकिन धनवान लोगों में ऐसी समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशीलता देखी गई है।
- अमीर बच्चों में लत की प्रवृत्ति शोध से पता चला है कि संपन्न परिवारों के बच्चे नशे की समस्या के प्रति अधिक असुरक्षित हो सकते हैं। इसका कारण अक्सर उन पर उच्च उपलब्धियों का दवाव और माता-पिता से दूरी मानी जाती है। एक अध्ययन में यह भी पाया गया कि अमीर परिवारों के बच्चों में सामाजिक और भावनात्मक समस्याएँ (maladjustment) गरीब बच्चों की तुलना में अधिक होती हैं।
- वयस्कों में भी लत का प्रभाव अमीर वयस्क गरीबों की तुलना में लगभग 27% अधिक शराब का सेवन करते हैं। धन प्राप्त करने की तीव्र लालसा भी एक तरह की प्रक्रिया लत (process addiction) बन सकती है। मनोवैज्ञानिक डॉ. तियान डेटन बताते हैं कि पैसे या संपत्ति प्राप्त करने की अच्छी भावना बार-बार हासिल करने की कोशिश इंसान को इस लत का शिकार बना सकती है।
- खर्च करने की लत (Shopaholism) पैसा खर्च करने की लत, जिसे “शॉपहोलिज्म” कहा जाता है, यह भी धन से जुड़ी एक सामान्य लत है। यह इंसान के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकती है।
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भावनाएँ और पैसा
पैसे से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण भावनाएँ हैं डर, अपराधबोध, शर्म और ईर्ष्या। यह समझने में समय लगाना जरूरी है कि पैसा आपके लिए किन भावनाओं से जुड़ा है, क्योंकि बिना जागरूकता के, ये भावनाएँ आपकी तर्कसंगत सोच पर हावी हो सकती हैं और आपके कार्यों को प्रभावित कर सकती हैं।
1. डर (Fear):
सामान्य डर में शामिल हैं: – पैसे की कमी का डर। – बेवकूफ दिखने का डर। – दूसरों की ईर्ष्या को उकसाने का डर। अपनी स्थिति का पर्दाफाश या अपमानित होने का डर।
2. शर्म (Shame):
पैसा और निजी वित्त (personal finance) से जुड़ी शर्म सबसे आम और शक्तिशाली भावनाओं में से एक है। यह लोगों को उन चीज़ों को करने से रोकती है जो उन्हें करनी चाहिए। शर्म से जुड़ी कुछ संभावित भावनाएँः
मेरे पास पर्याप्त पैसा नहीं है।
मैंने अपने वित्त के बारे में सोचना टाल दिया है।
मैं बजट बनाने, बचत करने या रिटायरमेंट प्लानिंग जैसे कामों को नजरअंदाज करता हूँ।
मैं इन सब चीजों के बारे में अनजान हैं।
मैं जरूरत से ज्यादा खर्च करता हूँ।
मैं दुखी होने पर सामान खरीदता हूँ।
3. टालमटोल (Procrastination):
जो लोग वित्तीय ज़रूरतों को नजरअंदाज करते हैं, वे अक्सर खुद को आलसी या अनुशासनहीन मानते हैं। यह धारणा गलत और मददगार नहीं है। चिंता से बचने के लिए इंसान अक्सर टालमटोल करता है। अल्पकालिक रूप में, यह बचने का तरीका काम करता है, लेकिन लंबे समय में इससे स्थिति और खराब हो सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य और पैसा
- शराब और नशे की लतः अत्यधिक शराब या अन्य पदार्थों के उपयोग से गलत फैसले, नौकरी पर खतरा, और गुप्त व्यवहार होता है।
- डिप्रेशन (Depression): अवसाद करियर में रुकावट डाल सकता है या नौकरी करने की क्षमता पर असर डाल सकता है। डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने में असमर्थ हो सकते हैं।
- ध्यान-अभाव विकार (ADD/ADHD): ऐसे व्यक्ति केवल उन्हीं कामों में गहन ध्यान केंद्रित कर पाते हैं जो उन्हें रुचिकर लगते हैं। बिल जमा करना या रोजमर्रा के वित्तीय प्रबंधन जैसे उबाऊ काम आसानी से नजरअंदाज हो जाते हैं। इनके लिए सबसे अच्छा तरीका वित्तीय प्रबंधन को किसी और को सौंपना हो सकता है, जबकि वे बड़े स्तर की योजना बनाने में अच्छे हो सकते हैं। पैसा सिर्फ एक साधन नहीं है, बल्कि भावनाओं और व्यवहारों के जाल में उलझा हुआ है। इसे समझना और अपनी भावनाओं से निपटना एक स्वस्थ वित्तीय जीवन के लिए जरूरी है।
उपभोक्ता और पैसा
ब्रांड्स के साथ हमारी भावनात्मक जुड़ाव हमारे अनुभवों से बनते हैं और समय के साथ हमारी स्मृति में एक तरह से छुपे हुए रूप में ब्रांड्स से जुड़ जाते हैं। जब हम किसी ब्रांड को याद करते हैं, तो न केवल उसके फ़ायदे और विशेषताएँ याद आती हैं, बल्कि उसके प्रति हमारी भावनाएँ भी उभरती हैं।
भावनात्मक निर्णय कैसे बनते हैं?
जब हम किसी चीज़ के सभी पहलुओं को देखते हैं और एक समग्र राय बनाते हैं, तो हमें यह समझना मुश्किल हो जाता है कि यह राय किस विशेष चीज़ पर आधारित है। विज्ञापन हमारी भावनाओं को जागृत करने के इरादे से बनाए जाते हैं, जैसे:
- “Nothin’ Says Lovin’ Like Somethin’ in the Oven” (Pillsbury)
- “There are some things money can’t buy, for everything else there’s MasterCard”
विज्ञापन और उपभोक्ता की मानसिक स्थितिः
विज्ञापन में भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का उपयोग करना सीधा नहीं है। उपभोक्ता का मौजूदा मानसिक और भावनात्मक स्थिति विज्ञापन देखने के परिणाम को प्रभावित करती है। अगर उपभोक्ता उत्तेजित और ऊर्जा से भरा है, तो वह अधिक सक्रियता वाले उत्पाद पसंद करेगा (जैसे एनर्जी ड्रिंक)। अगर उपभोक्ता शांत और आरामदायक महसूस कर रहा है, तो वह आरामदायक उत्पाद चुनेगा (जैसे चाय)।
भावनात्मक संदेश और ब्रांड की छविः
विज्ञापन में छिपे भावनात्मक संदेश उपभोक्ताओं की राय और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। ब्रांड के आइकॉन (logo) और नाम से जुड़ी छवियाँ गहरे अर्थ देती हैं और उपभोक्ता के रोजमर्रा के अनुभवों से जुड़े भावनात्मक तंतु छूती हैं। चित्र और प्रतीक (icons) वर्बल मैसेज की तुलना में अधिक प्रभावशाली और जीवंत प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं। विज्ञापन केवल उत्पादों को दिखाने का माध्यम नहीं है, यह उपभोक्ताओं की भावनाओं को समझकर और उनसे जुड़ाव बनाकर उन्हें प्रभावित करने का एक शक्तिशाली तरीका है।
निष्कर्षः
कोई भी व्यक्ति पैसे के मामले में पूरी तरह से तर्कसंगत नहीं होता। हम जानते हैं कि बजट बनाना और हर महीने बचत करना हमारे हित में है, लेकिन फिर भी ऐसा नहीं करते। हमें यह भी पता है कि वित्तीय योजना की ज़रूरत है, लेकिन इसे टालते रहते हैं, और यह अक्सर कभी पूरा नहीं होता। पैसे के साथ हमारा रिश्ता साधारण नहीं बल्कि जटिल है। यह केवल एक स्थिर चीज़ नहीं है, बल्कि आंकड़ों, चुनौतियों और अवसरों का एक मिश्रण है। यह वह चीज़ है जिससे हम बार-बार जुड़ते हैं, बातचीत करते हैं और भावनाएँ रखते हैं। जब हम पैसे से जुड़े फैसले लेते हैं, तो वे हमारी वित्तीय स्थिति को प्रभावित करते हैं। ये प्रभाव बदले में हमारी भावनाओं और भविष्य के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह रिश्ता समय के साथ बदलता और विकसित होता रहता है। पैसे के साथ हमारा रिश्ता एक प्रक्रिया है, जो तर्क और भावनाओं का मिश्रण है।
इसे समझना और इसमें सुधार करना एक आजीवन यात्रा है। धन जब जरूरत से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, तो यह इंसान के मानसिक और सामाजिक जीवन में असंतुलन पैदा कर सकता है। लत के कारण पैदा होने वाले नकारात्मक प्रभावों को पहचानना और इनसे निपटने के उपाय करना जरूरी है। धन अब हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। धन का इस्तमाल और उससे होने वाले प्रभावों से हम सभी अवगत होते हैं, धन का उपयोग कैसे और कितना करना चाहिए हमें सब ज्ञात होता है। धन और मनुष्य का रिश्ता प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग अलग होता है और प्रत्येक व्यक्ति के पास अपने धन को खर्च करने की आज़ादी है, परन्तु आज़ादी के साथ जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। इसलिए धन का इस्तेमाल जिम्मेदार होकर करें।
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- Goldbart, S., PhD. (2011, October 31). Unlock Affluence Intelligence: Maximize your Capacities, Minimize your Worries. Psychology Today. https://www.psychologytoday.com/intl/blog/affluence-intelligence/201110/discover-and-maximize-your-money-psychology
- Travers, M., PhD. (2021, July 1). Being generous with money is a great way to boost your psychological well-being. Psychology Today. https://www.psychologytoday.com/intl/blog/social-instincts/202107/buying-others-makes-us-happier-buying-ourselves
- How money changes the way you think and feel. (n.d.). Greater Good. https://greatergood.berkeley.edu/article/item/how_money_changes_the_way_you_think_and_feel
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