सोशल मीडिया एडिक्शन: बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव
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सोशल मीडिया एडिक्शन: बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव

Arvind Otta in a TV Debate

डिजिटलीकरण के इस युग में, मोबाइल फोन परिवार के सदस्यों के समान हो गए हैं, वो भी प्रियतम सदस्यों के समान। सोशल मीडिया के उपयोग ने कई लोगों, विशेषकर युवा पीढ़ी के जीवन में खुद को सहजता से एकीकृत कर लिया है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक बच्चे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के आकर्षण में फंस रहे हैं, हम एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभरते हुए देख रहे हैं। हालाँकि ये माध्यम बच्चों को संतुष्टि के क्षणिक क्षण और जुड़ाव की भावना देते हैं, लेकिन ये उनके विकास और कल्याण के लिए नुकसानदायक हैं।

कैलिफ़ोर्निया संघीय अदालत में दायर एक मुकदमे में कहा गया है कि “मेटा जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ने वित्तीय लाभ को अधिकतम करने के लिए प्लेटफ़ॉर्म के महत्वपूर्ण खतरों के बारे में अपने दर्शकों को गुमराह किया है।” इस मुक़दमे के अलावा, इन सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर “बच्चों को लंबे समय तक अपने प्लेटफ़ॉर्म पर रखने के लिए रील और लघु वीडियो जैसी सुविधाएँ डिज़ाइन करने” का भी आरोप लगाया गया है। इससे बच्चों में इस प्लेटफॉर्म के प्रति लत पैदा होती है और युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्या पैदा हो रहा है।” अमेरिका के 33 राज्यों ने मेटा के खिलाफ यह मुकदमा दायर किया है।

सोशल मीडिया और मानसिक स्वास्थ्य

हमने भले ही इंटरनेट को पूर्णतया स्वीकार कर लिया हो, लेकिन बच्चों पर इसके नुकसान प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है। सोशल मीडिया का उपयोग तेजी से एक लत में बदल गई है, और यह समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। सोशल मीडिया के उपयोग की गंभीर चिंता पर जोर देते हुए, एनडीटीवी इंडिया ने मनोवैज्ञानिक और मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता डॉ. अरविंद ओत्ता के साथ सोशल मीडिया की लत के हानिकारक पहलुओं पर एक महत्वपूर्ण चर्चा की।

भारत में फेसबुक और इंस्टाग्राम का इस्तेमाल करने वालों की आबादी काफी बड़ी है। इन प्लेटफॉर्म्स के सबसे ज्यादा यूजर्स भारत में ही हैं। अध्ययनों से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं कि सोशल मीडिया का प्रभाव, खासकर बच्चों पर कितना गहरा है। 9-13 वर्ष की आयु के 62% बच्चे और 13-17 वर्ष की आयु के 49% बच्चे दिन के कम से कम 3 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं।
NDTV एंकर नगमा सहर और डॉ. अरविंद ओत्ता के बीच एक प्रेरक बातचीत में, सोशल मीडिया की लत में वृद्धि तथा बाहरी दुनिया तथा बाहरी दुनिया से बच्चे का कटाव महत्वपूर्ण मुद्दा था। इस बात पर भी चर्चा की गयी कि सोशल मीडिया कैसे बच्चो और किशोरों के विकास पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालता है।

सोशल मीडिया इतना एडिक्टिव क्यों है ?

डॉ. ओत्ता ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे सोशल मीडिया पर खासकर छोटा वीडियो (रील) एडिक्टिव होता है और इसका प्रभाव लगभग उसी तरह होता है जैसे अन्य सभी एडिक्शन काम करता हैं। उन्होंने बताया कि डोपामाइन, सोशल मीडिया/रील एडिक्शन सहित लगभग सभी प्रकार की लत में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डोपामाइन आनंद से जुड़ा एक रासायनिक पदार्थ है। जब बच्चे रील देखने में संलग्न होते हैं, तो हमारे दिमाग के विशेष हिस्से में डोपामाइन का रिसाव होता है और होता रहता है, इसलिए वे लगातार आनंद महसूस करते हैं। यह बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के लिए भी विनाशकारी है।

डोपामाइन का रिसाव संतुष्टि की भावना पैदा करता है और डोपामाइन की रिहाई से प्राप्त आनंद को युवा दुहराते रहने के लिए इन सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर लंबे समय तक जुड़े रहते है। डॉ. अरविंद ओत्ता ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया, विशेष रूप से रील्स के माध्यम से, विभिन्न प्रकार की सामग्री प्रदान करता है जो खतरनाक हो सकता है जैसे: पहले वीडियो में हास्य की भावना होती है, फिर अचानक दूसरा वीडियो स्क्रीन पर उदास दिखाई देगा और तीसरा आक्रामक और इसी तरह वीडियो चलता रहता है। वीडियो के ये सभी अचानक बदलाव मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं और एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में यह त्वरित बदलाव भी अलग-अलग तरीकों से नकारात्मक होता है, जो उनकी भावनाओं, विचारों और व्यवहारों को प्रभावित करता है।

अरविंद ओत्ता ने उल्लेख किया कि सोशल मीडिया और प्लेटफार्मों के साथ लंबे समय तक जुड़ाव से उत्पन्न डोपामाइन की अत्यधिक रिहाई, युवाओं पर कई हानिकारक प्रभाव डाल सकती है। डोपामाइन के लगातार बढ़ने से चिंता बढ़ सकती है, निराशा बढ़ सकती है और यहां तक कि गुस्सा बढ़ने की समस्या हो सकती है। व्यापक पैमाने पर, उन्होंने उल्लेख किया कि यह एक ऐसा कारक हो सकता है जो अवसाद, चिंता, दीर्घकालिक तनाव के साथ-साथ आत्महत्या की प्रवृत्ति जैसे मनोवैज्ञानिक विकारों को भी उत्पन्न कर सकती है।

सोशल मीडिया की लत से कैसे निपटें?

डॉ. अरविंद ओत्ता ने कुछ तरीके भी बताए जिनसे सोशल मीडिया की लत को एक हद तक रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर किसी को सोशल मीडिया से कोई परेशानी है; सबसे पहले उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि सोशल मीडिया के कारण जीवन में समस्याएं आ रही हैं। या माता पिता को समझना होगा कि बच्चे को समस्या आ रही है। स्वीकृति से व्यक्तियों को समस्या को हल करने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठाने में मदद मिलेगी। समस्या को स्वीकार करने के बाद वे कुछ चरणों का पालन कर सकते हैं:

  • फोन का उपयोग न करते समय या उसे चार्ज न करते समय फोन को कम से कम 15 फीट की दूरी पर रखें। अपने फोन के लिए एक निर्दिष्ट स्थान बनाएं जहां आप इसे ठीक उसी तरह रखें जैसे आप घर लौटने के बाद अपनी चाबी को एक निर्धारित स्थान पर रखते हैं। इससे आपके फोन की पहुंच कम हो जाएगी और आप उस समय का उपयोग किसी अन्य उत्पादक कार्य में कर पाएंगे।
  • अपने सोशल मीडिया एप्लिकेशन से सभी नोटिफिकेशन बंद कर दें। इससे आप इन एप्लिकेशन को खोलने और सोशल मीडिया पर संलग्न होने के प्रति कम इच्छुक होंगे।
  • जब आप सक्रिय रूप से अपने सोशल मीडिया के उपयोग को कम करने का प्रयास करते हैं, आपको अपने द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना करनी चाहिए। जब भी आप अपने सोशल मीडिया के उपयोग को कम करने में सफल हों तो स्वयं को पुरस्कृत करें। यह आपके लिए एक सकारात्मक सुदृढीकरण होगा और आपको आगे प्रेरित करेगा।
  • शारीरिक गतिविधि में बच्चे का रुझान बढ़ाये। जब बच्चे अपने परिवार के साथ गतिविधियों के लिए बाहर जाते हैं, तो यह अनिवार्य है कि वे (माता-पिता और बच्चे) अपने उपकरण घर पर ही छोड़ दें। उन्हें इस पल का आनंद ले।
  • अगर फिर भी समस्या का समाधान ना निकले तो मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से मिलने में बिलकुल ना हिचके।

इस स्फूर्तिदायक चर्चा में डॉ. अरविंद ओट्टा ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे सोशल मीडिया का उपयोग धीरे धीरे एक लत में बदल सकता है। इन प्रभावों को सीमित करने के उपाय किये जाने चाहिए तथा सोशल मीडिया पर प्रदर्शित होने वाली सामग्री पर भी निगरानी रखनी चाहिए।

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