Hindi

क्यों हम खुद को पीछे खींचते हैं: सैल्फ सैबोटाजिंग का मनोविज्ञान

self-sabotaging

सैल्फ सैबोटाजिंग एक प्रक्रिया है जिसमें हम अपने खुद के लक्ष्यों या महत्वपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधा डालते हैं, बिना किसी बाहरी कारण के। इसका अर्थ है कि हम अपने ही मार्ग में खड़े होते हैं, जिससे हमारी सफलता को हानि पहुंचती है। यह अपने बारे में विचार करने की एक अवस्था है, जिसमें हम जानबूझकर खुद को आगे बढ़ने से रोकते हैं। आत्म-विनाशकारी व्यवहार अक्सर कार्य-लक्ष्यों, व्यक्तिगत प्रोजेक्ट्स और संबंधों में देखा जा सकता है। जब कोई व्यवहार रोजमर्रा के जीवन में समस्याएँ पैदा करता है और लंबे समय से तय किए गए लक्ष्यों में बाधा डालता है, तो उसे आत्म-विनाशकारी कहा जाता है। आम आत्म-विनाशकारी व्यवहारों में शामिल हैं:

  • काम टालना (Procrastination)
  • नशीले पदार्थों या शराब का उपयोग
  • भावनात्मक खाने की आदत
  • आत्म-हानि जैसे खुद को चोट पहुँचाना।

आत्म-विनाशकारी व्यवहार के कारणः

लोग कई कारणों से अपनी प्रगति में बाधा डालते हैं। इसके पीछे जागरूक (conscious) या अचेतन (unconscious) कारण हो सकते हैं। इनमें बचपन के अनुभव, पुराने रिश्तों के प्रभाव, आत्म-सम्मान की कमी और तनावपूर्ण स्थितियों से निपटने की समस्याएँ शामिल हैं।

  1. बचपन की कठिनाइयाँ: एक अस्थिर परिवार में बड़ा होना आत्म-विनाशकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे सकता है। यदि बचपन में माता-पिता ने आपको बार-बार यह कहा हो कि आप कुछ खास नहीं कर पाएँगे, तो हो सकता है आप खुद को विफलता की ओर ले जाएँ।
  2. रिश्तों में समस्याएँः यदि पिछले रिश्तों में आपको बार-बार नीचा दिखाया गया हो, तो आप अभी भी कमजोर महसूस कर सकते हैं। एक अच्छे रिश्ते में रहते हुए भी आप धोखा दे सकते हैं या बिना कारण रिश्ता तोड़ सकते हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि आप खुद को योग्य नहीं मानते या फिर चोट लगने के डर से ऐसा करते हैं। ऑस्ट्रेलिया में रोमांटिक रिश्तों पर आत्म-विनाश के प्रभाव पर किए गए एक अध्ययन में 15 मनोवैज्ञानिकों ने इसे मुख्य कारण माना।
  3. संज्ञानात्मक विसंगति (Cognitive Dissonance): यह मानसिक असुविधा होती है जब व्यक्ति दो परस्पर विरोधी विचारों को एक साथ पकड़ता है। लोग अपने विश्वास और कार्यों में स्थिरता चाहते हैं।
  • उदाहरणः
    • आप एक अच्छे व्यक्ति से शादी कर रहे हैं, लेकिन आपके बचपन में परिवार अस्थिर था। आपका यह मानना कि “स्थिर और प्यारभरा विवाह संभव नहीं है,” आपके वर्तमान विश्वास के साथ टकराव पैदा करता है।
    • काम से संबंधित उदाहरणः
      • आप एक बड़े ग्राहक को जीतने वाले हैं और बहुत पैसा कमाने वाले हैं, लेकिन आप खुद को इसके लायक नहीं मानते ।
      • आप मीटिंग से पहले शराब पी लेते हैं और पूरी तरह चूक जाते हैं।
      • आप अपनी प्रगति को रोकने के लिए खुद ही कदम उठाते हैं।

इस तरह का आत्म-विनाशकारी व्यवहार खाने की समस्या, शराब और नशीले पदार्थों का दुरुपयोग, जुआ खेलने और आत्म-हानि जैसी आदतों का कारण बन सकता है। यह व्यक्ति की प्रेरणा को खत्म कर सकता है और उन्हें बेचैन बना सकता है।

  1. आत्म-सम्मान की कमी (Low Self-Esteem): जिन लोगों में आत्म-सम्मान कम होता है और जो खुद की नकारात्मक छवि रखते हैं, वे आत्म-विनाशकारी व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वे ऐसे कार्य करते हैं जो उनकी नकारात्मक धारणाओं को सही साबित करें।
  • यदि वे सफलता के करीब पहुँचते हैं, तो वे असहज हो जाते हैं।
  • उन्होंने हमेशा सुना है कि वे असफल होंगे, या खुद से यह मान लिया है।
  • आत्म-विनाशकारी व्यवहार उनकी विफलता की भविष्यवाणी को सच साबित कर देता है।

डिजिटल आत्म-विनाश (Digital Self-Sabotage):

आजकल डिजिटल आदतों में भी आत्म-विनाशकारी व्यवहार देखने को मिलता है।

उदाहरणः

  • बार-बार सोशल मीडिया, ईमेल या टेक्स्ट चेक करना।
  • पार्टनर का फोन चुपके से देखना ।
  • वर्चुअल दोस्तों की तस्वीरों या इवेंट्स को लेकर जुनूनी होना।
  • किसी पुराने साथी की ऑनलाइन जानकारी खोजना।

अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के एक सर्वे में पाया गया कि 86% लोग लगातार अपने गैजेट्स चेक करते हैं, जिससे उनका तनाव और चिंता बढ़ती है। ऑनलाइन या ऑफलाइन कोई भी विचार या व्यवहार जो आपकी मानसिक स्थिति को खराब करे और आपको अपना सबसे बड़ा दुश्मन बना दे, आत्म-विनाशकारी है।

आत्म-विनाश के संकेत :

आत्म-विनाशकारी व्यवहार के कई संकेत हैं। इन्हें पहचानना पहला कदम है, जिससे आप इन्हें दूर कर सकते हैं।

  1. काम टालना : लगातार महत्वपूर्ण कामों को टालते रहना, जबकि आप जानते हैं कि वे आपकी सफलता के लिए ज़रूरी हैं।
  2. नकारात्मक आत्म-वार्तालाप (Negative Self-Talk): खुद के प्रति अत्यधिक आलोचनात्मक या अपमानजनक आंतरिक संवाद करना।
  3. आत्म-अलगाव (Self-Isolation): तनाव या चुनौतीपूर्ण समय में दोस्तों, परिवार या सहकर्मियों से दूर रहना। इससे आप मदद या समर्थन नहीं ले पाते ।
  4. पूर्णतावाद (Perfectionism): अपने लिए अति-उच्च और असंभव मानक स्थापित करना। चीज़ों के “सही” होने का इंतजार करना। अपने काम में हमेशा खामियाँ ढूँढते रहना जिससे आप कभी भी तैयार महसूस नहीं करते।
  5. फीडबैक से बचना (Avoiding Feedback): जब भी आलोचना (यहाँ तक कि रचनात्मक आलोचना) दी जाती है, रक्षात्मक हो जाना। यदि आप फीडबैक को विकास का साधन मानने में असमर्थ हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि आप अपनी आत्म-सम्मान को संभावित खतरों से बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
  6. अक्सर पछतावा महसूस करना (Frequent Feelings of Regret): पिछली गलतियों पर बार-बार विचार करना या लगातार ऐसा महसूस करना कि आपने गलत फैसले लिए हैं। यह आत्म-विनाशकारी प्रवृत्तियों का संकेत हो सकता है।

आत्म-विनाश में फसने के कारण

1. आत्म-जिम्मेदारी का अभावः

आत्म-विनाश की स्थिति में फँसने का एक बड़ा कारण यह है कि आप अपने कार्यों या निष्क्रियता की जिम्मेदारी लेने से बचते हैं। जब आप किसी समस्या के लिए अपनी भूमिका को स्वीकार नहीं करते तो आप उन्हीं आदतों और व्यवहारों में फँसे रहते हैं जो आपकी प्रगति को बाधित करते हैं। ऐसे समय में आप समस्याओं को अपनी वजह मानने के बजाय बाहरी परिस्थितियों की गलती मानते हैं।

  • उदाहरणः नौकरी, मौसम, या दूसरों को दोष देना।
बदलाव का तरीकाः

अपनी जिंदगी और परिस्थितियों पर ध्यान दें और यह स्वीकार करें कि घटनाओं में आपकी भी एक भूमिका है।

  • आत्म-जिम्मेदारी लेने से आप अपने समस्या क्षेत्रों को समझ पाएँगे और उन्हें सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा पाएँगे।
  • आत्म-दयालुता और करुणा के साथ यह सोचें कि आपके जीवन में कौन-से क्षेत्र स्थिर हैं, असंतोषजनक हैं, या दुख का कारण बन रहे हैं।
2. नकारात्मक दृष्टिकोण, कहानियों या विश्वासों से जुड़ावः

जब आप मानसिक, भावनात्मक या शारीरिक रूप से किसी नकारात्मक सोच या विश्वास से जुड़े रहते हैं, तो यह अनजाने में आपकी निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।

  • नकारात्मक विश्वासः
    • “मैं पर्याप्त सक्षम नहीं हूँ,”
    • “मैं अच्छा नहीं हूँ,”
    • “मैं स्मार्ट नहीं हूँ।”

ये विश्वास आपको अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने से रोकते हैं।

  • दूसरों और दुनिया के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोणः
    • ये न केवल आपकी ऊर्जा को कम करते हैं, बल्कि आपको बेहतर बनने से भी रोकते हैं।

    बदलाव का तरीकाः

    • यह समझने का प्रयास करें कि कौन-से विश्वास, कहानियाँ और दृष्टिकोण आपको पीछे खींच रहे हैं।
    • नकारात्मक सोच को पहचानें और उसे बदलने का प्रयास करें।
    • सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने और आत्म-विश्वास बढ़ाने से आप अपने आत्म-विनाशकारी व्यवहारों से बाहर आ सकते हैं।

    आत्म-विनाश को रोकने के तरीके

    1. सकारात्मक आत्म-वार्तालाप करें (Positive Affirmations):

    अपने अंदर के आलोचक को चुनौती दें। जब भी आपका मन आपको नीचा दिखाने की कोशिश करे, तो उसके संदेशों को परखें और अपने लिए एक नई कहानी बनाएं।

    • उदाहरणः “मैं नहीं कर सकता” को “मैं जरूर कर सकता हूँ” में बदलें।

    सकारात्मक आत्म-वार्तालाप सीखना आपके लक्ष्यों और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद है। अगर यह अभ्यास कठिन लगे, तो Self-Affirmations Session आज़माएं।

    2. छोटे और व्यावहारिक लक्ष्य बनाएँ:

    कभी-कभी बड़े लक्ष्यों की असफलता आत्म-सम्मान को कम कर देती है। इस स्थिति से बचने के लिए छोटे और आसानी से हासिल होने वाले लक्ष्य तय करें। छोटे लक्ष्यों को पूरा करते हुए आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आप बड़े लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए तैयार होंगे। बड़े सपने देखें लेकिन उन्हें छोटे-छोटे चरणों में बाँटें। हर कदम पर अपने लक्ष्यों की समीक्षा करें और हर बार एक कार्य पूरा होने पर खुद पर विश्वास मजबूत करें। छोटे-छोटे कार्यों से प्रगति सुनिश्चित करें। आत्म-विश्वास बढ़ाने के लिए Confidence Series आज़माएं।

    3. स्वास्थ्यवर्धक आदतें अपनाएँ:

    शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का आपस में गहरा संबंध है। नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद से मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। ये आदतें आत्म-विनाश को रोकने में सहायक होती हैं। नियमित रूप से हलचल बढ़ाने के लिए Guided Movement Sessions का उपयोग करें।

    4. अपने सपनों और प्राथमिकताओं पर ध्यान दें:

    बड़े सपने देखें लेकिन उन्हें छोटे-छोटे चरणों में बाँटें। हर कदम पर अपने लक्ष्यों की समीक्षा करें और हर बार एक कार्य पूरा होने पर खुद पर विश्वास मजबूत करें। छोटे-छोटे कार्यों से प्रगति सुनिश्चित करें।

    5. एक जवाबदेही साथी (Accountability Buddy) ढूँढें:

    अपने लक्ष्यों को किसी भरोसेमंद दोस्त या मेंटर के साथ साझा करें। वे न केवल आपको प्रेरित करेंगे बल्कि समय-समय पर सुधार की ओर ध्यान दिलाएँगे।

    6. अपने प्रति करुणा रखें (Self-Compassion):

    अपने साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप अपने करीबी दोस्तों के साथ करते हैं। गलतियों पर खुद को कठोरता से न आंकें, बल्कि उनसे सीखें और आगे बढ़ें।

    7. पेशेवर मदद लें:

    कभी-कभी आत्म-विनाश की जड़ें गहरी होती हैं, जो पिछले आघात या अनुभवों से जुड़ी हो सकती हैं। यदि आप इसे रोकने में संघर्ष कर रहे हैं, तो एक थेरेपिस्ट या काउंसलर की मदद लें। वे आपको अमूल्य सुझाव और रणनीतियाँ प्रदान कर सकते हैं। इन कदमों को अपनाकर आप आत्म-विनाश से बाहर निकल सकते हैं और एक सफल व संतोषजनक जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।

    Exit mobile version