सफलता का मनोविज्ञान: असफलता से सीखकर कैसे बनाएं अपनी जीत की राह
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सफलता का मनोविज्ञान: असफलता से सीखकर कैसे बनाएं अपनी जीत की राह

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जब आपका सामना असफलता से होता है तो आपके मन में सबसे पहला विचार क्या आता है? क्या आपका कांफिडेंस तुरंत कम हो जाता है या आप उस हार से सीखते है? क्या आप हर एक चुनौती को इस नज़रिए से देखते हैं कि वो बस ये साबित करने का एक मौका है कि आप कितने बुद्धिमान और प्रतिभाशाली
हैं? या आप उसे ऐसी चीज़ के रूप में देखते हैं जो आपको ग्रो करने में मदद करती है?

प्रत्येक इंसान एक दूसरे से बहुत अलग होता है और उनके अनुभव भी एक दूसरे से काफ़ी अलग होते हैं। यदि किन्हीं अलग व्यक्तियों को भी एक जैसा कार्य करने को कहा जाए या कोई एक जैसी दुविधा से बाहर आने को कहा जाए तो भी वह व्यक्ति अपने अलग अलग तरीकों से उसका समाधान निकलेंगे, उदाहरण के लिए कई छात्र कॉम्पटीटिव एग्जाम (Competitive Exam) देते हैं पर हर कोई अच्छा परिणाम नहीं दे पाते।

तो ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोग एक चैलेंज को पार करने के बाद ग्रो करने लगते हैं वहीं कुछ लोग उसके आगे घुटने टेक कर वहाँ से कभी आगे ही नहीं बढ़ पाते?

सक्सेस (सफ़लता) क्या होता है ?

फलदायी, व्यस्त और समृद्ध जीवन जीने के लिए पहला कदम होता है यह समझना कि सफ़लता आपके लिए क्या होती है ? माया एंजेलो के अनुसार सफ़लता का अर्थ होता है खुद को पसंद करना, हम जो खुद कार्य कर रहें हैं उसको पसंद करना और हम जिस तरीके से उस कार्य को कर रहे हैं उसको भी पसंद करना। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि आप क्या हासिल करना चाहते हैं। इन सवालों के जवाब ढूंढिए –

  1. आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है ?
  2. आपके अनुसार सफ़ल जीवन क्या है?
  3. क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जिन्हें आप फॉलो करते हैं? उनके जीवन में ऐसा क्या है जिसे आप अपने जीवन में सम्मिलित करना चाहेंगे?
  4. आप में कितनी इच्छा शक्ति है अपने लक्ष्य को पाने की ?
  5. आपको कैसे पता चलेगा कि आप सफ़लता हासिल कर चुके हैं?

इन प्रश्नों के उत्तर जानने के पश्चात हम समझ सकते हैं कि हमारे लिए सफ़लता क्या होती है।

सफ़लता के रहस्य

रिचर्ड जॉन द्वारा 8 मार्गदर्शक सिद्धांत दिए गए हैं जिन्हें सफ़ल लोग इस्तेमाल करते हैं –

  1. जूनून से मार्गदर्शन – यदि आपको किसी भी कार्य के लिए बहुत इच्छा या जुनून है तो उसका रास्ता चुनिए।
  2. मेहनत और चंचलता – मेहनत भी बहुत करिए पर इस तरीके से की उस कार्य में आनंद आए बजाए ऊब जाने के।
  3. विशेषज्ञता – सीखते रहना चाहिए, अभ्यास करना चाहिए और अपने कौशल बढ़ाने चाहिए जब तक आप उस कार्य में अच्छा परिणाम देने लगें।
  4. ध्यान केंद्रित करना – अपने कार्य को पूरा समय दीजिए जितने कि आवश्यकता हो।
  5. दृढ़ निश्चय रखना – अस्वीकृति, आलोचना और हार जीत तो इस खेल का हिस्सा है, इनकी वजह से हमारा खुद में विश्वास कमज़ोर नहीं पढ़ना चाहिए।
  6. जिज्ञासु रहना – जिज्ञासु, चौकस और नए आईडियाज के लिए दिलचस्पी होना चाहिए।
  7. दूसरों की मदद करें – खुद के लिए अच्छा करने में ज़्यादा शामिल ना हों, अन्य लोगों की भी मदद करें।
  8. आत्मविश्वास – कितनी भी कठिनाइयों के बाद भी खुद में विश्वास रखें। खुद को नई चुनौतियां दें।

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मनःस्थिति की दो मानसिकताएं

  1. स्थिर मनःस्थिति – एक स्थिर क्षमता जिसे साबित करने की आवश्यकता होती है।
  2. विकासशील मनःस्थिति – एक परिवर्तनीय क्षमता जिसे सीखने के माध्यम से विकसित किया जा सकता है।

एक दुनिया में, प्रयास एक बुरी चीज है। यह असफलता की तरह है, जिसका मतलब है कि आप होशियार या प्रतिभाशाली नहीं हैं। दूसरी दुनिया में, प्रयास का कोई मोल नहीं है। बच्चे गलतियां करने में या खुद को शर्मिंदा करने की परवाह नहीं करते। वे चलते हैं, गिरते हैं, फिर उठ खड़े होते हैं। वे बस आगे बढ़ते रहते हैं। ये सीखने की प्रक्रिया पर रोक कौन लगाता है? इसका उत्तर है स्थिर मनःस्थिति ।

विकासशील मनःस्थिति वाला बच्चा पूछता हैः कोई क्यों बार-बार एक ही पहेली हल करना चाहेगा? अधिकांश बच्चे अपना हाथ नहीं उठाते यदि उन्हें उत्तर का यकीन न हो। लेकिन एक विकासशील मनःस्थिति का छात्र ऐसा करता है: अगर मैं गलत हूं, तो गलती सुधारी जाएगी। या मैं पूछ सकता हूँ, “इसे कैसे हल किया जाएगा?” या “मुझे यह समझ नहीं आ रहा। क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?” सिर्फ ऐसा करके ही मैं अपनी बुद्धिमत्ता बढ़ा रहा हूँ। स्थिर मनःस्थिति वाले बच्चों ने अवसर छोड़ देते है क्योंकि उन्हें लगा कि वे असफल होंगे और वे सीखने वाले नहीं बन पाए।

विकासशील मनःस्थिति वाले लोग अवसर को यह सोचकर पकड़ते हैं कि सफलता सीखने में है। कठिन सवालों का जवाब देने के बाद, स्थिर मनःस्थिति वाले लोग सिर्फ यह जानना चाहते थे कि उनका जवाब सही था या गलत। उन्हें इस बात में रुचि नहीं थी कि कौन सी जानकारी उन्हें सीखने में मदद कर सकती है। केवल विकासशील मनःस्थिति वाले लोग इस पर ध्यान देते है क्योंकि उनके लिए सीखना एक प्राथमिकता है। प्रयास ही आपको होशियार या प्रतिभाशाली बनाता है। आपके पास मनःस्थिति चुनने का विकल्प है। मनःस्थिति केवल शक्तिशाली विश्वास हैं, लेकिन वे आपके मस्तिष्क में हैं, और आप अपनी सोच बदल सकते हैं।

मैं दुनिया को कमजोर और मजबूत या सफल और असफल में नहीं बांटता… मैं दुनिया को सीखने वाले और न सीखने वाले में बांटता हूँ।

हर कोई सीखने की तीव्र इच्छा के साथ जन्म लेता है। शिशु प्रतिदिन अपने कौशल को बढ़ाते हैं। सिर्फ साधारण कौशल ही नहीं, बल्कि जीवन के सबसे कठिन कार्य, जैसे चलना और बोलना सीखना। वे कभी यह फैसला नहीं करते कि यह बहुत कठिन है।

मनःस्थिति प्रयास का अर्थ बदल देती है

बचपन में, हमें एक कहानी सुनाई गई थी जिसमें एक प्रतिभाशाली लेकिन अनिश्चित खरगोश और एक धीमा लेकिन स्थिर कछुआ था। इसका पाठ यह था कि धीमा और स्थिर ही दौड़ जीतता है। लेकिन सच में, क्या हममें से कोई भी कछुआ बनना चाहता था? समस्या यह थी कि इन कहानियों ने इसे एक विकल्प बना दिया था – या तो ये, या वो।

समाज के रूप में हम स्वाभाविक, बिना प्रयास के हासिल की गई उपलब्धियों को प्रयास से प्राप्त सफलता से अधिक महत्व देते हैं। विकासशील मनःस्थिति वाले लोग मानते हैं कि यहां तक कि प्रतिभाशाली लोगों को भी अपनी उपलब्धियों के लिए कड़ी मेहनत करनी होती है।

  • अधिक प्रयासः बड़ा जोखिम स्थिर मनःस्थिति वाले व्यक्ति के लिए यह विचार कि प्रयास करें और फिर भी असफल रहें, सबसे बड़ा डर है।
  • कम प्रयासः बड़ा जोखिम आप पीछे मुड़कर कह सकते हैं “मैं हो सकता था…”, या, पीछे मुड़कर कह सकते हैं, “मैंने उन चीजों के लिए अपनी पूरी कोशिश की जो मेरे लिए महत्वपूर्ण थीं।”

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विकासशील मनःस्थिति की यात्रा

चरण 1: अपनी स्थिर मनःस्थिति को अपनाएं।

चरण 2: अपनी स्थिर मनःस्थिति के उत्प्रेरकों के प्रति जागरूक बनें।

चरण 3: अपनी स्थिर मनःस्थिति को एक नाम दें।

चरण 4: इसे शिक्षित करें। इसे अपने साथ एक यात्रा पर ले जाएं।

जब स्थिर मनःस्थिति प्रकट हो, इसे अपनी राय के लिए धन्यवाद दें, लेकिन उसे बताएं कि आप क्या करना चाहते हैं और क्यों। जब कोई असफलता हो, इसे बताएं कि आप इससे सीख रहे हैं। आज सीखने और बढ़ने के कौन से अवसर हैं? मेरे लिए? मेरे आस-पास के लोगों के लिए? कब, कहां और कैसे मैं अपनी योजना शुरू करूंगा?

ज्ञान को क्रिया में बदलना

मनःस्थिति को बदला जा सकता है। केवल इन दोनों मनःस्थितियों को जानकर ही आप अलग तरीके से सोचना और प्रतिक्रिया देना शुरू कर सकते हैं। एक व्यक्ति में दोनों मनःस्थितियाँ हो सकती हैं। कुछ क्षेत्रों में वह स्थिर मनःस्थिति दिखा सकता है, और अन्य क्षेत्रों में विकासशील मनःस्थिति। इसके अलावा, एक व्यक्ति जरूरी नहीं कि हमेशा स्थिर या विकासशील मनःस्थिति में ही रहे। प्रयास महत्वपूर्ण है, लेकिन यह अकेला ही सब कुछ नहीं है। लोगों के पास अलग-अलग संसाधन और अवसर होते हैं। धनवान लोगों के पास एक सुरक्षा जाल होता है।

वे अधिक जोखिम ले सकते हैं और तब तक प्रयास कर सकते हैं जब तक वे सफल नहीं हो जाते। संपन्न, शिक्षित और जुड़े हुए लोगों का प्रयास बेहतर कार्य करता है। विकासशील मनःस्थिति लोगों को अपने काम से प्रेम करने और कठिनाइयों के बावजूद उसे जारी रखने की अनुमति देती है। कई विकासशील मनःस्थिति वाले लोग ऊंचाई तक जाने की योजना नहीं बनाते; वे केवल वह करते हैं जो उन्हें पसंद है, और इसी के परिणामस्वरूप वे ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं। विकासशील मनःस्थिति लोगों को उनके कार्य का मूल्यांकन परिणाम के बावजूद करने की अनुमति देती है।

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दोनों तरह की मनःस्थिति वाले लोग भी नोबेल पुरस्कार या ढेर सारा पैसा पसंद कर सकते हैं और इसके लिए जितना भी प्रयास करना पड़े उतना कर सकते हैं, लेकिन पहले वाले इसे स्वीकृति के लिए करते हैं और बाद वाले इसे प्रेम के लिए करते हैं। अपनी मनःस्थिति को समझने से आपको स्थिर मनः स्थिति की कमियों का एहसास होता है। विकासशील मनःस्थिति यह विश्वास है कि क्षमताओं को विकसित किया जा सकता है। लेकिन यह आपको यह नहीं बताता कि कितना बदलाव संभव है या बदलाव में कितना समय लगेगा।

और इसका यह अर्थ नहीं है कि सब कुछ, जैसे पसंद या मूल्य, बदला जा सकता है। एक बार जब आप जूनियर टूर्नामेंट जीतते हैं, तो इसे कई बार जीतना आसान हो जाता है। सीनियर टूर्नामेंट में भाग लेकर आप भविष्य के लिए तैयारी कर रहे हैं। विकासशील मनःस्थिति में आपको हमेशा आत्मविश्वास की आवश्यकता नहीं होती। जब आप किसी चीज़ में अच्छे नहीं होते, तब भी आप उसमें पूरी तरह से कूद सकते हैं और उसे निभा सकते हैं और सीख सकते हैं। वास्तव में, कभी-कभी आप उसमें कूद पड़ते हैं क्योंकि आप उसमें अच्छे नहीं हैं।

इस तरह, कॉग्निटिव थेरैपी लोगों को अधिक यथार्थवादी और आशावादी मूल्यांकन करने में मदद करती है। लेकिन यह उन्हें स्थिर मनःस्थिति और इसके मूल्यांकन की दुनिया से बाहर नहीं ले जाती। मनःस्थिति और स्कूल की उपलब्धि के लिए जूनियर हाई में जाना कई छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है। काम करना बहुत कठिन हो जाता है, ग्रेडिंग नीति सख्त हो जाती है, और पढ़ाई का तरीका अधिक व्यक्तिगत नहीं रहता। यह सब तब होता है जब छात्र अपने नए किशोर शरीर और भूमिकाओं को समझने की कोशिश कर रहे होते हैं। ग्रेड में गिरावट आती है, लेकिन सभी छात्रों के ग्रेड एक समान नहीं गिरते।

स्थिर मनःस्थिति वाले छात्रों ने गिरावट दिखाई, जबकि विकासशील मनःस्थिति वाले छात्रों के ग्रेड में सुधार हुआ। जब स्थिर मनःस्थिति वाले छात्र असफल होते हैं, तो वे कई चीजों को दोष देते हैं: अपनी क्षमता, खराब शिक्षक। असफलता के खतरे को महसूस करते हुए, विकासशील मनःस्थिति वाले छात्र भी असहाय महसूस करते हैं, लेकिन वे सीखने के लिए संसाधनों को जुटाते हैं। बर्कले के एक ग्रेजुएट छात्र जॉर्ज डैन्टज़िग एक गणित की कक्षा में देर से पहुंचे और जल्दी से ब्लैकबोर्ड से सवालों की नकल कर ली। उन्होंने सवालों को बहुत कठिन पाया और उन्हें हल करने में कई दिन लगे।

वे होमवर्क के प्रश्न नहीं थे, बल्कि वे दो प्रसिद्ध गणित समस्याएं थीं जो कभी हल नहीं हुई थीं। किशोरों में कम मेहनत करने की प्रवृत्ति अक्सर देखी जाती है क्योंकि वे अपने वयस्क होने की स्वतंत्रता का एहसास करते हैं। लेकिन जिन छात्रों का सोचने का तरीका सकारात्मक होता है, वे इसे एक अवसर समझते हैं। उनके लिए यह नया विषय सीखने का समय है, यह जानने का समय है कि उन्हें क्या पसंद है और वे भविष्य में क्या बनना चाहते हैं।

कॉलेज में संक्रमण एक और परिवर्तन, एक और संकट। यहाँ प्रतिभाशाली लोग एक साथ रखे जाते हैं। कई स्थिर मनःस्थिति वाले छात्र ऐसे पढ़ाई करते हैं: वे पाठ्यपुस्तक और अपनी कक्षा के नोट्स पढ़ते हैं। यदि उन्हें बहुत कठिन लगता है, तो वे इसे दोबारा पढ़ते हैं। या वे सब कुछ याद करने का प्रयास करते हैं। विकासशील मनःस्थिति वाले छात्र अपनी पढ़ाई और प्रेरणा का पूर्ण नियंत्रण लेते हैं। पाठ्यक्रम सामग्री को बिना सोचे-समझे रटने के बजाय, वे व्याख्यानों में विषयों और आधारभूत सिद्धांतों की तलाश करते हैं।

वे अपनी गलतियों को तब तक दोहराते जब तक कि वे उन्हें पूरी तरह से समझ न लें। वे सिर्फ परीक्षा में अच्छे अंक पाने के लिए नहीं, बल्कि सीखने के लिए पढ़ाई कर रहे थे। जब पाठ्यक्रम उबाऊ या कठिन हो जाए, तब भी उन्होंने अपनी प्रेरणा नहीं खोई। उन्होंने कहा: “मैंने अपनी रुचि बनाए रखी।” “मैंने केमिस्ट्री लेने के बारे में सकारात्मक बना रहा।”, “मैंने पढ़ाई के लिए खुद को प्रेरित रखा।” भले ही उन्हें पाठ्यपुस्तक उबाऊ या शिक्षक सख्त लगा हो, उन्होंने प्रेरणा नहीं खोई।

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असफलता से सीखें

यू. एस. में की गई एक स्टडी के अनुसार व्यावसायियों ने अपनी इंडस्ट्री बदल ली अगर वह असफल हुए तो और अधिकतर वह नई इंडस्ट्री में भी असफल हो जाते थे। इसका अर्थ यह नहीं कि उन्हें ज्ञान नहीं था, उन्हें लगता था कि वो कार्य उन्होंने पहले किया और असफलता प्राप्त करी वह कार्य फिर से उन्हें असफलता प्राप्त कराएगा। सफ़ल वही होते है जो इस जाल में फसते नहीं है। हमें हमारी गलतियों से सीखकर आगे बढ़ना चाहिए और चुनौतियों का सामना करने के लिए नए रास्ते खोजने चाहिए। यदि हम सफलता में खुश हो सकते हैं तो असफलता को भी संभालना आना चाहिए।

असफलता स्वीकार करना चाहिए। यदि हमें कुछ बीमारी हो जाती है तो हम उसकी दवाई लेते है और जब हम ठीक हो जाते है तो दवाई लेना छोड़ देते है परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि वह बीमारी फिर से नहीं हो सकती। इसी प्रकार सफ़लता भी रहती है, एक बार सफ़ल हो जाने के बाद हमें प्रयास कम नहीं करने चाहिए। सफ़ल होने के बाद भी हम असुरक्षित ही रहेंगे कि कब हम असफल हो जाएंगे। सफलता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके लिए निरंतर प्रयास करना पड़ता है। सफ़लता का अर्थ प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग अलग हो सकता है, सफ़लता क्या है और उसे कैसे जारी रखना है ये सब हमारे हाथ में होता है।

हमारी सोच से हम सफल या असफल बन सकते हैं। अंततः, सफलता केवल प्रतिभा या भाग्य पर निर्भर नहीं होती, बल्कि इस पर निर्भर करती है कि हम अपनी सोच को कैसे ढालते हैं और खुद में विश्वास रखकर निरंतर सीखते और प्रयास करते रहते हैं। इस दृष्टिकोण को अपनाकर, हम अपने लक्ष्यों को न केवल प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि प्रेरणादायक जीवन भी जी सकते हैं।

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