ब्रेन रॉट, जिसे कुछ लोग “ब्रेन रॉट” या “ब्रेन-रॉट” भी लिखते हैं, इसका मतलब है किसी व्यक्ति की मानसिक या बौद्धिक क्षमताओं का खराब होना। यह समस्या तब होती है जब कोई व्यक्ति ज़्यादा समय आसान या फिजूल सामग्री (खासकर ऑनलाइन) देखने में बिताता है।
हालांकि “ब्रेन रॉट” अब डिजिटल संस्कृति का पर्याय बन चुका है, इसका इस्तेमाल 19वीं सदी में हुआ था, जब इंटरनेट, कैट वीडियो, या टिकटॉक जैसे ट्रेंड्स का कोई नामोनिशान नहीं था। हेनरी डेविड थोरो ने इस शब्द का पहली बार अपनी प्रसिद्ध 1854 की किताब वाल्डेन में ज़िक्र किया था। यह किताब प्रकृति में सरल जीवन जीने के उनके अनुभव पर आधारित थी। इसमें थोरो ने देखा कि समाज जटिल विचारों की तुलना में सरल बातों की ओर ज़्यादा झुकाव रखता है। उन्होंने लिखाः “जब इंग्लैंड आलू के सड़ने का इलाज ढूंढ रहा है, तो क्या कोई ब्रेन रॉट का इलाज ढूंढने की कोशिश नहीं करेगा, जो और भी ज़्यादा व्यापक और खतरनाक है?”
थोरो ने “ब्रेन रॉट” का इस्तेमाल समाज की आलोचना के लिए किया था, लेकिन आज इंटरनेट उपयोगकर्ता इसे अक्सर मज़ाकिया और खुद पर तंज कसने वाले अंदाज़ में इस्तेमाल करते हैं। यह डिजिटल ओवरलोड से होने वाली मानसिक थकान को व्यक्त करता है। हालांकि, इस हल्के-फुल्के शौक ने गंभीर चर्चाओं को भी जन्म दिया है, खासतौर पर युवाओं पर अंतहीन स्क्रॉलिंग और अब जनरेटिव एआई के मानसिक और बौद्धिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर। कई राज्यों में स्कूलों में ध्यान भटकने से रोकने और सोशल मीडिया के संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए मोबाइल फोन पर पाबंदी लगाई जा रही है।
ब्रेन रॉट की आदतें डूमस्क्रॉलिंग (लगातार निगेटिव खबरें देखना) और सोशल मीडिया से नकारात्मक खबरें पढ़ना, ब्रेन रॉट की आदतों में शामिल हैं। इसी तरह, मीम्स के बारे में बहुत ज़्यादा बातें करना और इंटरनेट स्लैंग का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल भी इसका हिस्सा है।
लेकिन सबसे बड़ा संकेत यह है कि जब आपका ऑनलाइन समय आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दखल देने लगे। स्वास्थ्य मनोवैज्ञानिक और न्यूरोसाइकोलॉजी विशेषज्ञ, डॉ. जूलिया कोगन के अनुसार, अगर आप फोन से चिपके रहने के कारण ठीक से सो नहीं पा रहे हैं, या द्विटर और टिकटॉक के लिए असली जिंदगी के रिश्तों को नजरअंदाज कर रहे हैं, तो आपको ब्रेन रॉट हो सकता है। उन्होंने कहा, “अन्य संकेतों में फोन से अलग होने में परेशानी और बार-बार नोटिफिकेशन चेक करने की आदत शामिल हो सकती है। इसके अलावा, फोन के ज़्यादा इस्तेमाल से आंखों में खिंचाव, सिरदर्द, या गलत मुद्रा में बैठने के कारण होने वाली समस्याएं भी ब्रेन रॉट की निशानी हो सकती हैं।”
कौन सबसे ज़्यादा प्रभावित होता है?
हम सभी कभी न कभी ब्रेन रॉट का शिकार होते हैं। ऐसा न करना मुश्किल है क्योंकि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा अब फोन पर निर्भर है। लेकिन कुछ लोग इससे दूसरों से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, और दुर्भाग्य से, महामारी के बाद बच्चे इस समस्या से सबसे ज्यादा जूझ रहे हैं। 2023 की एक स्टडी में पाया गया कि 6 से 14 साल के बच्चों का औसत स्क्रीन टाइम (2 घंटे या उससे अधिक) जनवरी 2020 से पहले 41.3% था, जो बाद में बढ़कर 59.4% हो गया। इसके अलावा, अमेरिका में हुई रिसर्च के मुताबिक, 8 से 12 साल के बच्चे हर दिन करीब 4 से 6 घंटे ऑनलाइन बिताते हैं, जबकि किशोर (टीनएजर्स) 9 घंटे तक ऑनलाइन रहते हैं।
स्क्रीन टाइम के दौरान दिमाग में क्या होता है?
- सीखने और याददाश्त पर असरः एक अध्ययन में पाया गया कि 18-25 साल के युवाओं में ज़्यादा स्क्रीन टाइम से दिमाग की बाहरी परत, सेरेब्रल कॉर्टेक्स पतली हो जाती है। यह परत याददाश्त, निर्णय लेने और समस्या हल करने जैसी मानसिक प्रक्रियाओं के लिए ज़िम्मेदार होती है।
- मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का खतराः जो लोग रोज़ाना पांच घंटे या उससे ज़्यादा टीवी देखते हैं, उनमें डिमेंशिया, स्ट्रोक या पार्किंसंस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
- नींद पर प्रभावः रात को देर तक स्क्रीन देखने से नींद में बाधा होती है। स्क्रीन से निकलने वाली रोशनी मस्तिष्क के पीनियल ग्रंथि से मेलाटोनिन हार्मोन का स्राव धीमा कर देती है, जिससे सर्केडियन रिदम (शरीर की प्राकृतिक जैविक घड़ी) प्रभावित होती है।
- ग्रे मैटर पर असरः ज़्यादा स्क्रीन टाइम या स्मार्टफोन की लत वाले वयस्कों में ग्रे मैटर (दिमागी ऊतक जो भावनाओं, याददाश्त और हरकतों के लिए ज़रूरी है) की मात्रा कम पाई गई। यह ऊतक उम्र के साथ स्वाभाविक रूप से कम होता है, लेकिन स्क्रीन का ज़्यादा इस्तेमाल इस प्रक्रिया को तेज कर सकता है।
- सक्रिय जीवनशैली का महत्वः स्क्रीन टाइम कम करने के साथ-साथ व्यायाम, अच्छी नींद, सामाजिक जुड़ाव, और तनाव प्रबंधन जैसी गतिविधियाँ ग्रे मैटर को स्वस्थ रखने में मदद करती हैं।
- सुबह-सुबह फोन देखने का खतराः लोफ्लर के अनुसार, सुबह उठते ही फोन देखना हमारे नर्वस सिस्टम को जगा देता है और “फाइट-ऑर-फ्लाइट” प्रतिक्रिया को सक्रिय कर सकता है। यह आदत दिनभर चिंता को बढ़ा सकती है और दिमाग को ज़रूरत से ज़्यादा सतर्क बना सकती है। लोफ्लर का कहना है कि सुबह उठते ही फोन देखना ऐसा है जैसे किसी खतरनाक जानवर को सामने देखना। यह हमारे शारीरिक स्तर पर तनाव बढ़ाने का काम करता है।
सलाहः
• सुबह फोन से दूरी रखें।
• स्क्रीन टाइम कम करें और उसकी जगह स्वस्थ आदतें अपनाएं, जैसे कि व्यायाम और सामाजिक गतिविधियाँ ।
• रात को सोने से पहले स्क्रीन देखने से बचें ताकि नींद बेहतर हो।
किस उम्र में स्क्रीन का इस्तेमाल शुरू करना ठीक है?
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (AAP) के अनुसार, 18 से 24 महीने से छोटे बच्चों के लिए स्क्रीन के इस्तेमाल से बचना चाहिए, सिवाय फैमिली वीडियो कॉल के। 2 से 5 साल के बच्चों के लिए स्क्रीन समय को दिन में एक घंटे तक सीमित रखना चाहिए, और वह भी उच्च-गुणवत्ता वाले कार्यक्रम जैसे सेसमे स्ट्रीट या पीबीएस किड्स पर आधारित हो।
पेरेंट्स के लिए सलाहः
अगर घर का कोई काम करना हो और बच्चे को व्यस्त रखना हो, तो छोटे बच्चों के लिए सेसमे स्ट्रीट या डैनियल टाइगर नेबरहुड जैसे शैक्षिक और मनोरंजक कार्यक्रम चुनें। ये कार्यक्रम अच्छे सामाजिक कौशल सिखाने वाले पात्रों को दिखाते हैं। अगर संभव हो, तो इस तरह के कार्यक्रम बच्चों के साथ देखें और उनसे बातचीत करें ताकि वे समझ सकें कि उन्होंने क्या सीखा।
बच्चों के लिए डिजिटल स्क्रीन कितनी लत लगा सकती हैं?
मोबाइल डिवाइस इतने आकर्षक होते हैं कि समय का पता ही नहीं चलता। ये छोटे और हर जगह उपलब्ध होते हैं जिससे लोग इनका उपयोग बार-बार करते हैं। वयस्क इनकी खामियों को समझकर फोन को दूर रख सकते हैं लेकिन 2 या 3 साल के छोटे बच्चे जिन्हें इसके नुकसानों का ज्ञान नहीं है अगर बचपन से फोन/टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं, तो यह उनकी आदत बन जाती है, और वे इसे और ज्यादा इस्तेमाल करना चाहते हैं।
स्क्रीन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल क्यों नुकसानदायक है?
बच्चों को किसी समस्या से ध्यान हटाने के लिए स्क्रीन का उपयोग करना, जैसे किसी चोट के समय या खिलौना शेयर करने में परेशानी होने पर, एक त्वरित समाधान हो सकता है। लेकिन अगर माता-पिता बच्चे को आराम देने, गले लगाने और उनसे बात करने का समय निकालें, तो यह उनके भावनात्मक विकास के लिए बेहतर होगा। इसी तरह, खिलौने शेयर करने की समस्या को स्क्रीन के जरिए हल करने की बजाय बच्चों को साझा करना और बारी-बारी से खेलना सिखाना अधिक उपयोगी होगा।
ब्रेन रॉट कम करने के आसान टिप्स –
- बच्चों के लिए स्मार्टफोन इस्तेमाल में देरी करें: विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बच्चों को 16 साल की उम्र से पहले स्मार्टफोन न दें। कम एक्सपोजर से बच्चे डिजिटल लत से बच सकते हैं।
- स्क्रीन समय के लिए सीमाएँ तय करें:
- स्क्रीन का इस्तेमाल पढ़ाई, परिवार के समय, और नींद में बाधा न डाले।
- डिनर और परिवार के साथ समय बिताने जैसे मौकों पर डिवाइस फ्री जोन बनाएं।
- सोने से एक घंटा पहले इंटरनेट बंद कर दें।
- अच्छा व्यवहार दिखाएं: बच्चे वही सीखते हैं जो वे बड़ों को करते देखते हैं। अपने स्क्रीन समय को संतुलित करें ताकि बच्चे इसे अपनाएं।
- स्क्रीन टाइम की जगह अन्य गतिविधियाँ चुनें:
- फोन की जगह फिजिकल एक्टिविटी, दोस्तों के साथ समय बिताना, या किसी हॉबी में समय लगाएं।
- बच्चों के साथ नियमित स्क्रीन फ्री भोजन और बातचीत के लिए समय निकालें।
- सोने से पहले स्क्रीन से बचें: स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी नींद को प्रभावित कर सकती है। सोने से पहले स्क्रीन का इस्तेमाल बंद करें।
- साथ में स्क्रीन देखें:
- बच्चों के साथ शो या गेम देखें। उनके साथ बातचीत करें और उन्हें समझने में मदद करें कि वे क्या देख रहे हैं।
- शो खत्म होने के बाद उसके बारे में चर्चा करें ताकि वे जानकारी को बेहतर तरीके से समझ और याद कर सकें।
- सही मीडिया चुनें: बच्चों के लिए उम्र के अनुसार उपयुक्त ऐप्स, गेम्स, और प्रोग्राम चुनने के लिए Common Sense Media जैसी वेबसाइट्स का उपयोग करें।
- ऑनलाइन और ऑफलाइन समय का संतुलन बनाएँ: परिवार के लिए सोने और खाने का समय स्क्रीन फ्री रखें। केवल लंबी यात्राओं के दौरान स्क्रीन का इस्तेमाल करें।
इन आदतों से आप और आपके बच्चे डिजिटल लत से बच सकते हैं और स्वस्थ जीवनशैली अपना सकते हैं।
References +
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