अटैचमेंट थ्योरी एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक अवधारणा है जो यह समझाने का प्रयास करती है कि शिशुओं और उनके प्राथमिक देखभालकर्ताओं विशेषकर मां के बीच विकसित होने वाला भावनात्मक बंधन व्यक्ति के सामाजिक, भावनात्मक और व्यवहारिक विकास में कैसे भूमिका निभाता है। इस सिद्धांत की नींव ब्रिटिश मनोविश्लेषक जॉन बोल्बी ने 20वीं शताब्दी में रखी। उन्होंने कहा कि मनुष्य में अपने देखभालकर्ता से जुड़ने की प्रवृत्ति जैविक और विकासात्मक रूप से आवश्यक होती है, क्योंकि यह संबंध सुरक्षा और जीवित रहने की संभावना बढ़ाता है।
बोल्बी के इस सिद्धांत को आगे मैरी ऐन्सवर्थ ने प्रयोगात्मक दृष्टिकोण से विस्तार दिया और शिशुओं में विभिन्न प्रकार की “आवेशन शैलियों” की पहचान की। इन शैलियों के माध्यम से यह समझा जा सकता है कि एक व्यक्ति भविष्य में अपने संबंधों, आत्म-छवि और तनावपूर्ण परिस्थितियों में कैसे व्यवहार करेगा। यह सिद्धांत न केवल बाल विकास को समझने में सहायक है, बल्कि वयस्कों के रोमांटिक रिश्तों, पारिवारिक संबंधों और मानसिक स्वास्थ्य की गहराई को समझने का एक उपयोगी माध्यम भी बन चुका है।
अटैचमेंट थ्योरी के चरण:-
बॉल्बी ने यह भी सुझाव दिया कि आवेशन कई चरणों में बनता है:
प्री-अटैचमेंट चरण के पहले भाग के दौरानः
शिशु अपने प्राथमिक देखभालकर्ता को पहचानते हैं, लेकिन अभी तक उनका लगाव नहीं होता है। उनका रोना और झल्लाहट माता-पिता का ध्यान और देखभाल आकर्षित करती है, जो बच्चे और देखभाल करने वाले दोनों के लिए फायदेमंद होता है। जैसे-जैसे यह चरण लगभग तीन महीने तक आगे बढ़ता है, शिशु माता-पिता को अधिक पहचानने लगते हैं और उनमें विश्वास की भावना विकसित होती है।
- अंधाधुंध अटैचमेंट थ्योरी के चरण के दौरानः शिशु अपने जीवन में प्राथमिक देखभालकर्ताओं और कुछ द्वितीयक देखभालकर्ताओं के प्रति स्पष्ट प्राथमिकता दर्शाते हैं।
- विभेदकारी अटैचमेंट अवधि के दौरानः बच्चे एक व्यक्ति के साथ गहरा लगाव बना लेते हैं और उस व्यक्ति से अलग होने पर अलगाव की पीड़ा और चिंता का अनुभव करते हैं।
- अंततः, बहल आवेशन चरणों के दौरानः बच्चे प्राथमिक देखभालकर्ताओं से परे लोगों के साथ भी गहरा लगाव विकसित कर लेते हैं।
अटैचमेंट थ्योरी की विशेषताएँ:-
आवेशन सिद्धांत की मुख्य विशेषता यह है कि यह शिशु और देखभालकर्ता के बीच भावनात्मक बंधन को एक जैविक आवश्यकता के रूप में देखता है। यह बंधन बच्चे को सुरक्षा की भावना देता है, जिससे वह स्वतंत्र रूप से दुनिया का अन्वेषण कर सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार, शिशु का व्यवहार जैसे रोना, मुस्कराना, या पौछे-पीछे चलना – उसका ध्यान आकर्षित करने का एक तरीका होता है ताकि देखभालकर्ता उसकी ज़रूरतों का उत्तर दे सके।
बोल्बी ने चार मुख्य विशेषताएँ बताईः
- निकटता रखरखावः देखभालकर्ता के पास रहने की इच्छा।
- सुरक्षित ठिकानाः खतरे या डर में उसकी ओर लौटना।
- सुरक्षित आधारः सुरक्षा की भावना से दुनिया को एक्सप्लोर करना।
- अलगाव संकट: बिछड़ने पर बेचैनी महसूस करना।
इन विशेषताओं का उद्देश्य बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। अगर देखभालकर्ता निरंतर, संवेदनशील और उत्तरदायी हो, तो बच्चा “सुरक्षित आवेशन” विकसित करता है, जो उसके संपूर्ण मानसिक विकास के लिए अनिवार्य है। यह सिद्धांत इस बात को रेखांकित करता है कि भावनात्मक संबंध किसी भी बच्चे के आत्म-विश्वास, सीखने की क्षमता और सामाजिकता का आधार होते हैं।
अटैचमेंट थ्योरी के प्रकार:-
मैरी ऐन्सवर्थ के शोध के अनुसार, आवेशन की चार मुख्य शैलियाँ होती हैं, जो शिशु और देखभालकर्ता के बीच की परस्पर क्रिया पर आधारित होती हैं।
- सुरक्षित अटैचमेंटः ऐसे बच्चे देखभालकर्ता के साथ सहज रहते हैं, उनके दूर जाने पर थोड़ी बेचैनी और वापसी पर खुशी जाहिर करते हैं। उन्हें पता होता है कि उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखा जाएगा।
- अनिश्चित-अवरोधकः ऐसे बच्चे दिखने में आत्मनिर्भर होते हैं, लेकिन भीतर से असुरक्षित होते हैं। वे अपने देखभालकर्ता की अनुपस्थिति पर भावनाएं प्रकट नहीं करते क्योंकि उन्हें उम्मीद नहीं होती कि उनकी ज़रूरतें पूरी होंगी।
- अनिश्चित-उद्विग्नः ये बच्चे अत्यधिक चिपकने वाले होते हैं, और देखभालकर्ता की अनुपस्थिति पर बहुत परेशान होते हैं। वापसी पर भी वे असहज रहते हैं क्योंकि उन्हें भरोसा नहीं होता कि देखभालकर्ता स्थिर रहेगा।
- भ्रमित या अव्यवस्थितः यह शैली तब विकसित होती है जब देखभालकर्ता स्वयं डराने वाला हो या शोषण करता हो। बच्चा उलझन में होता है कि उसे देखभालकर्ता से प्यार करना है या डरना है।
अटैचमेंट क्यों होता है?
- जैविक कारणः
- इंसान एक सामाजिक प्राणी है- अकेले रहने की बजाय समूह में रहने से सुरक्षा, जीवित रहने, और प्रजनन की संभावना बढ़ती है।
- बच्चा जन्म से ही असहाय होता है, उसे जीवित रहने के लिए देखभाल करने वाले की ज़रूरत होती है इसलिए उसका दिमाग खुद-ब-खुद जुड़ाव अटैचमेंट बनाने के लिए प्रोग्राम्ड होता है।
- जब बच्चा देखभाल करने वालों से जुड़ता है, तो शरीर में ऑक्सिटॉसिन जैसे हार्मोन रिलीज़ होते हैं, जो सुखद अनुभव देते हैं और जुड़ाव को मज़बूत करते हैं।
- मनोवैज्ञानिक कारणः
- जब बच्चे को भावनात्मक रूप से कोई सहारा देता है, तो उसमें आत्मविश्वास आता है।
- यह जुड़ाव एक सुरक्षित आधार बनाता है, जिससे बच्चा दुनिया को एक्सप्लोर करने की हिम्मत जुटाता है।
- जब यह बेस मज़बूत होता है, तो भविष्य में रिश्तों में भरोसा, आत्मनिर्भरता और स्थिरता आती है।
- सामाजिक कारणः
- एक इंसान का पहला सामाजिक रिश्ता माँ-पिता से होता है। इसी के आधार पर वह बाद के रिश्ते बनाना सीखता है।
- बच्चा यही सीखता है कि दुनिया भरोसे के लायक है या नहीं।
- यह अनुभव आगे चलकर उसके दोस्ती, प्रेम, विवाह, और परिवार जैसे संबंधों को प्रभावित करता है।
यह काम किस प्रकार करता है:
- जब देखभालकर्ता बच्चे की आवश्यकताओं के प्रति लगातार संवेदनशील और संवेदनशील होता है, तो बच्चे में विश्वास और सुरक्षा की भावना विकसित होती है।
- यह सुरक्षा बच्चे को बाहर निकलने और अपने परिवेश का पता लगाने की अनुमति देती है, यह जानते हुए कि उनके पास लौटने के लिए एक सुरक्षित आश्रय है।
- किसी परिचित, आरामदायक आकृति के पास लौटने से बच्चे का भावनात्मक संतुलन पुनः स्थापित होता है, इसलिए अन्वेषण के प्रत्येक चक्र से बच्चे का आत्मविश्वास और निपुणता की भावना बढ़ती है।
अटैचमेंट संबंधी विकारः
आसक्ति विकार लगभग विशेष रूप से उन स्थितियों में देखे जाते हैं जो मानक देखभाल से अत्यधिक विचलन दर्शाते हैं, जिसमें अत्यधिक उपेक्षा और संस्थागत देखभाल शामिल है। विशेष रूप से, आरण्डी (डीएसएम-5 के अनुसार) का निदान केवल तभी दिया जाता है जब बच्चों ने रोगजनक देखभाल का अनुभव किया हो, जिसका अर्थ है बच्चे की भावनात्मक या शारीरिक जरूरतों की लगातार उपेक्षा, या प्राथमिक देखभाल करने वालों में बार-बार बदलाव (उदाहरण के लिए, पालक देखभाल में या संस्थानों के भीतर)। यह उल्लेखनीय है कि साहित्य में आरएडी के किसी भी मामले की पहचान नहीं की गई है जिसमें उपेक्षा स्पष्ट रूप से मौजूद नहीं थी (ज़ीनाह और ग्लीसन, 2014 )।
डीएसईडी, हालांकि वर्तमान में डीएसएम-5 में आसक्ति के विकार के रूप में परिभाषित नहीं है, अत्यधिक परेशान शुरुआती देखभाल अनुभवों के समान सेट से जुड़ा हुआ है RAD या DSED के उद्भव के लिए जिम्मेदार सटीक पर्यावरणीय प्रक्रियाओं के बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी है। कुछ सुझाव हैं कि RAD के विकास पर कठोर या नकारात्मक पालन-पोषण के प्रभाव जीन अभिव्यक्ति दवारा मध्यस्थ हो सकते हैं (मिनिस एट अल., 2007)। हालाँकि DSED को अब DSM-5 में लगाव विकार के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इस बारे में साहित्य में कुछ असहमति है (और इस दिशानिर्देश के उद्देश्यों के लिए, इसे लगाव विकारों की परिभाषा में शामिल किया गया है)।
निष्कर्ष
जॉन बोल्बी द्वारा प्रतिपादित अटैचमेंट थ्योरी यह स्पष्ट करती है कि शिशु और देखभालकर्ता के बीच का प्रारंभिक भावनात्मक जुड़ाव बच्चे के व्यक्तित्व विकास, सामाजिक कौशल और भविष्य के संबंधों की नींव बनाता है। यह सिद्धांत बताता है कि एक सुरक्षित, उत्तरदायी और स्थायी संबंध बच्चे को सुरक्षा, आत्मविश्वास और दुनिया को समझने की शक्ति देता है। सुरक्षित अटैचमेंट स्टाइल वाले बच्चे अधिक संलित, आत्मनिर्भर और संबंधों में बेहतर होते हैं, जबकि असुरक्षित अटैचमेंट से जुड़े बच्चे जीवन में कई सामाजिक-भावनात्मक कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं। बोल्बी का यह योगदान केवल शैशव अवस्था तक सीमित नहीं, बल्कि किशोरावस्था और वयस्क जीवन तक गहराई से प्रभाव डालता है।
आज के संदर्भ में यह सिद्धांत पालन-पोषण, शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य, रिलेशनशिप थैरेपी, और समाज सेवा जैसे अनेक क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। अतः अटैचमेंट थ्योरी केवल एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं, बल्कि यह मानव संबंधों को समझने, बेहतर बनाने और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांत है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः
प्रश्न 1: अटैचमेंट थ्योरी क्या है?
उत्तरः अटैचमेंट थ्योरी एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है, जिसे जॉन बोल्बी ने विकसित किया। यह सिद्ध करता है कि बच्चे और देखभालकर्ता के बीच भावनात्मक बंधन अटैचमेंट बच्चे के मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 2: अटैचमेंट थ्योरी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक कौन हैं?
उत्तरः जॉन बॉल्बी- सिदधांत के जनक मैरी एन्सवर्थ – “अजीब स्थिति परीक्षण” के ज़रिए अटैचमेंट स्टाइल्स को व्यावहारिक रूप से परखा इनके अलावाहज़ान और शेवरने वयस्क अटैचमेंट पर काम किया।
प्रश्न 3: आंतरिक कार्य मॉडल क्या होता हैं?
उत्तरः यह बच्चे के दिमाग में बना मानसिक ढाँचा होता है जो यह तय करता है कि वह खुद को, दूसरों को और रिश्तों को कैसे देखता है। यही मॉडल उसके व्यवहार और संबंधों को दिशा देता है।
प्रश्न 4: क्या अटैचमेंट स्टाइल बदल सकते हैं?
उत्तर: हाँ, जीवन के अनुभव, थेरेपी, और स्वस्थ रिश्तों की मदद से कोई भी व्यक्ति अपने अटैचमेंट पैटर्न को धीरे-धीरे बदल सकता है।
References +
- Simply Psychology. (2025, April 20). John Bowlby’s attachment Theory. https://www.simplypsychology.org/bowlby.html
- Simply Psychology. (2024, January 17). Attachment Theory in Psychology. https://www.simplypsychology.org/attachment.html
- MSEd, K. C. (2023, September 12). Biography of psychologist John Bowlby. Verywell Mind. https://www.verywellmind.com/john-bowlby-biography-1907-1990-2795514