परीक्षा में असफल छात्र ने आत्महत्या की, बेरोजगारी से परेशान युवक फॉसी पर झूला, या फिर असफल प्रेमी ने प्रेमिका के उपर तेजाब फेंका. इस तरह की घटनाएं अथवा दुर्घटनाएं हम आए दिन प्रिट या इलेक्ट्राँनिक मीडिया के माध्यम से देखते सुनते रहते हैं. इस तरह का असामान्य अथवा आत्मघाती ब्यवहार केवल सामान्य लोग ही नहीं बल्कि सामाजिक आर्थिक रूप से सम्पन्न तथा प्रसिद्धि के शिखर पर बैठे ब्यक्ति भी प्रदर्शित करते हैं. इस तरह की दुर्घटनाओं के कारण तो अनगिनत हो सकते हैं, पर एक बात स्पष्ट है कि हम असफलता या उससे उपजे तनाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं. इस अति-संवेदनशीलता के कारण ढ़ेरों हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है- असफलता के प्रति हमारा अति-नकारात्मक नजरिया जो कि विकसित होता है हमारी परवरिश, शिक्षा और समाज से.
बचपन से ही, चाहे वह घर हो, या स्कूल हो, हमें सफल होने की घुटटी ही पिलायी जाती है. टी. वी. सीरियल्स, रियालिटी शो, सोसल मीडिया, मैनेजमेंट की किताबें सभी सफलता प्राप्त करने के तरीके सिखाते हैं. स्वप्न दिखाते हैं, मार्गदर्शन करते हैं और सफलता से प्राप्त प्रशन्नता और सम्मान को ही महिमामंडित करते हैं. हमारी वर्तमान शिक्षा ब्यवस्था भी प्रयास के स्थान पर परिणाम को प्रोत्साहित करती है. फलस्वरूप, बच्चे चाहे वह पढ़ाई लिखाई हो या खेलकूद, अपनी रैंक, पोजीशन, ग्रेड या अंकों को ही लेकर परेशान रहते हैं. बच्चे पढ़ाई का वास्तविक आनन्द उठाने या सीखने के स्थान पर परिणाम को लेकर ही तनावग्रस्त रहते हैं.
असफलता का सामना कैसे करें ? हार को गले कैसे लगाएं ? यह हमें सिखाया ही नहीं जाता. हार और जीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, पर हार वाले पहलू को हम देखना ही नहीं चाहते और जब असफलता से हमारा सामना होता है, तब हमें पता ही नहीं होता कि हमारी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए ? हम सिर्फ हताश, निराश और किंकर्तब्यविमूढ़ होकर रह जाते हैं. आखिर हम असफल होने से इतने भयभीत क्यों होते हैं ? हम आसमान पाने का ख्वाब देखते हैं पर छोटी सी असफलता से टूट कर बिखर जाते हैं. हम हमेशा हॅंसना तो चाहते हैं पर अपने ही आँसुओं का मूल्य नहीं समझ पाते.
असफलता के प्रति हमारी प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि हम असफलता को परिभाषित कैसे करते हैं. अगर हम ऐसा सोचते हैं कि असफलता का कारण हमारा दुर्भाग्य है या फिर असफल होना कमजोर होने का प्रतीक है तो निश्चित ही हमें तनाव अथवा अवसाद होगा. सुप्रसिद्व मनोवैज्ञानिक एलिस के ए. बी. सी. माँडल के अनुसार असफलता और उसके प्रति प्रतिक्रिया को समझते हैं-
ए (एक्टिवेटिंग इवेंट अथवा घटना) बी (बिलीफ अथवा विश्वास) सी (काँन्सीक्वेन्सेस अथवा परिणाम)
उदाहरण के लिए ‘किसी विषय में फेल होना’ एक घटना है अब यह हमें कितना प्रभावित करेगी यह घटना के विषय में हमारे विश्वास तंत्र पर निर्भर करेगा. अगर हम इसे बहुत बड़ी घटना मानते हैं, अवांछनीय मानते हैं, शर्मनाक समझते हैं, प्रतिष्ठा पर धब्बा तथा भविष्य को अंधकारमय बनानें वाला समझते हैं तो परिणामस्वरूप हमें तनाव होगा, अवसाद होगा. इसी घटना को अगर हम ब्यावहारिक और सामान्य दृष्टिकोंण से देखते हैं और भविष्य के लिए सीख मानकर चलते हैं तो यह उतना तनावदायक नही होता. अत: कोई घटना तनावपूर्ण होगी अथवा नहीं यह घटना से अधिक उसके प्रति रखे जाने वाले विचारों से निर्धारित होता है .
अगर हम सोचते हैं कि असफलता कमजोरी का प्रतीक है हमें अपने विचारों को पुनःब्यवस्थित करने की आवश्यकता है . यथार्थ के धरातल पर, हमेशा सफल होना सम्भव नहीं. असफलता को स्वीकार करना और उसे चुनौती के रूप में लेना ही साहस का प्रतीक है. फिर चीजों को केवल हार जीत के ही चश्मे से ही क्यों देखा जाय. किसी भी घटना का मूल्यांकन केवल परिणाम के परिप्रेक्ष्य में करने के स्थान पर अगर प्रक्रिया पर ध्यान दें तो हम पाते हैं कि प्रत्येक घटना हमें कुछ न कुछ अनुभव भी देती है. जिस खेल में हम हार भी जाते हैं उससे भी काफी कुछ सीखते हैं, भविष्य के नजरिए से यह सीखना महत्वपूर्ण होता है न कि परिणाम.
असफल होने पर हमें ब्यक्तिगत भिन्नता तथा परिवर्तन के नियम को भी ध्यान रखना चाहिए. ब्यक्तिगत भिन्नता का नियम हमें बताता है कि हम सभी एक दूसरे से भिन्न हैं, और यह भिन्नता सभी स्तरों पर – शारीरिक, मानसिक अथवा ब्यक्तित्व गुणों के मामले में पायी जाती है. हम सभी अपने आप में अतुलनीय होते हैं, हम अपनी तुलना केवल अपने आप से कर सकते है किसी अन्य से नहीं. इसलिए अपनी तुलना में दूसरों को सफल होते देख हीनता का भाव न पालें ।
परिवर्तन का नियम प्राकृतिक नियम है और सभी पर सौ प्रतिशत लागू होता है. परिवर्तन का नियम हमें बताता है कि समय चाहे जैसा भी हो, बदलेगा अवश्य. एक सजीव के रूप में हम जीवन भर परिवर्तन का सामना करते रहते है. तो फिर नकारात्मक समय को लेकर अधीर क्यों होना. हम सभी को एक नजर अपने बचपन पर अवश्य डालनी चाहिए जहाँ एक बार सीधे खड़े होने के लिए हम पचासों बार गिरते थे. लेकिन उससे हमारे मनोबल और उत्साह पर कभी असर नहीं पडता था. शायद हमारे सोच का पैटर्न फिक्स नहीं होता था और हम गिरने को अपनी प्रतिष्ठा से जोडकर नहीं देखते थे. बड़े होते ही गिरना हमारी प्रतिष्ठा की विषय वस्तु बन जाता है. असफलता हमें आत्ममूल्याकंन का अवसर देती है, आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, हमें मौका देती है रिश्तो की भीड़ में अपनों को पहचानने का. असफलता हमें अन्य अवसरों की तरफ ध्यान भी दिलाती है .
तनाव और प्रबन्धन
असफलता से यदि तनाव उत्पन्न हो रहा हो तो उससे भागने अथवा अस्वीकार करने की कोशिश न करें. यह आपकी परेशानी को और बढा सकता है.
क्या करें
- संभव हो तो स्वयं को ब्यस्त रखें. कोई भी सृजनात्मक कार्य करें. केवल खाली बैठकर अपनी असफलता को याद करना नकारात्मक विचारों को आमंत्रण देने जैसा है.
- अपनी परेशानियों, संवेगों और मनोभावों को किसी शुभचिंतक से अवश्य साझा करें. इससे आपको मानसिक संबल मिलेगा.
- मनपसंद संगीत का आनन्द लें. विभिन्न शोधों में संगीत की तनाव निवारक शक्ति की पुष्टि हो चुकी है.
- छोटे बच्चों के साथ समय बिताएं. उनके साथ खेलकर अथवा दूर बैठकर भी उनकी क्रियाओं का आनन्द ले सकते हैं.
- पुरानी सफलताओं को याद करें. यह आत्म विश्वास को मजबूती प्रदान करता है.
- शारीरिक ब्यायाम तथा योग को दैनिक दिनचर्या में शामिल करें.
- जरूरतमंद लोगों की मदत करें. यह धनात्मक विचारों के संचार के साथ आपका आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक होगा.
क्या न करें
- सामाजिक संपर्क से दूर भागने की कोशिश न करें.
- अनावश्यक अकेलेपन से बचें.
- धूम्रपान अथवा मद्यपान का सहारा न लें.
- हर दूसरे ब्यक्ति से परामर्श लेने से बचें. यह भ्रम की स्थिति पैदा करेगा. आवश्यक नहीं कि प्रत्येक ब्यक्ति आपकी परेशानी को आपके दृष्टिकोंण से समझे.
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