जीवन चलता रहता है, या यूं कहिए दौड़ता और कटता रहता है। जीवन की इस आपाधापी में हमारी टू डू लिस्ट में बहुत जरूरी और गैर जरूरी काम रहते हैं और हम बस उन्हीं को निपटाने के लगे रहते हैं। इन सब में हमारा स्वास्थय न जाने कब पीछे छूट जाता है पता ही नहीं चलता। हम और हमारा समाज मनासिक स्वास्थ्य के प्रति या तो अपनी आंखें बंद कर यह सोचता है कि नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है और यदि है तो मुझे और मेरे परिवार को नहीं हो सकता।
हालांकि, पिछले कुछ सालों से हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर खासे जागरूक हुए हैं, जिसके परिणाम स्वरूप जिमिंग, योग और जुम्बा की कक्षायें खचाखच भरी नज़र आती हैं, पर जब बात होती है मानसिक स्वास्थ्य की तो न तो इसके लेकर जागरूकता की बात होती है और न ही मन को तन्दुरूस्त रखने के कोई उपाय किए जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सबसे ज्यादा अवसाद ग्रस्त देश है। साथ ही यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत में 2012 से 2030 के मध्य मानसिक स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति के कारण लगभग 1 खरब रूपये का आर्थिक नुकसान होने की संभावना है। इस भयावह स्थिति के बाद भी भारत में प्रति एक लाख जनसंख्या पर मात्र 0.3 मनोचिकित्सक, 0.07 मनोवैज्ञानिक और 0.07 मानसिक सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में घोषित किया। इसे प्रतिवर्ष मनाया भी जाता है। यह दिवस हम सबको एक अवसर उपलब्ध करता है मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने और बातचीत करने के लिए। मानसिक स्वास्थ्य मात्र मानसिक उलझन या परेशानी तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि सही रूप में गर इसका प्रबंधन न हो तो यह बहुत सारी शारीरिक बीमारियां जैसे हृदय रोग, मधुमेह, आदि के लिए भी जिम्मेदार होता है। मानसिक अस्वास्थता के कारण प्रति वर्ष लगभग 8 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं यानि कि प्रति 40 सेकेंड पर एक जान चली जाती है। इसलिए इस विषय पर अधिक से अधिक ध्यान आकर्षित करने की जरूरत है। इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस को आत्महत्या रोकथाम के अंर्तगत ”40 सेकेंड अभियान” की तरह मना रहा है।
हर रोज अखबारों के सुर्खियों में आत्महत्या की कई खबरें देखने को मिलती हैं। न जाने कितने लोग जिंदगी से तंग आकर जीवन लीला को समाप्त कर लेते हैं, जिसमें युवाओं की संख्या बहुतायत में होती है। आत्महत्या मानव मृत्यू के करणों में दूसरे नंबर पर आता है। इसके पीछे कई कारण होते हैं, जिनमें पारिवारिक कलह, शैक्षणिक असफलता, घाटा, नौकरी में परेशानी, संबंध विच्छेद, मानसिक अवसार, नशा, बाइपोलर डिसआर्डर, सीजोफेर्निया आदि प्रमुख हैं। मनोवैज्ञानिक का मानना है कि आत्महत्या का कारण कभी भी केवल एक नहीं होता, व्यवहारिक, वातावरणीय, पारिवारिक और जैव वैज्ञानिक कारण भी शामिल होते हैं। शोध में यह भी पाया गया है कि जो लोग आत्महत्या करते हैं या करना चाहते हैं उनमें से अधिकांशत: जीना चाहते हैं, बस वह अपनी वर्तमान परिस्थिति में सामंजस्य बिठा पाने में खुद को असमर्थ पाते हैं और उससे निपटने के लिए वह आत्महत्या के रूप में एक अस्थायी समाधान खोज लेते हैं।
यदि हम चाहें और थोड़ा सा जागरूक हो जायें और थोड़ा ध्यान दें तो न जाने कितने लोगों को असमय काल के गाल में समाने से रोका जा सकता है। मनुष्य होने के नाते हमारे पास भाव अभिव्यक्ति और समझने की अद्भुत क्षमता है। हम अपने आस—पास के लोगों की परेशानियों को समझ भी सकते हैं यदि हम चाहें तो, और यह करने के लिए मनोविज्ञान की किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं है, बस जरूरत है थोड़ा ध्यान देने की।
यदि हमें कोई परेशान दिख रहा है तो उससे बात करें पूछें कि क्या हुआ, क्यों परेशान हो, बिना उपदेश, ज्ञान और पूर्वाग्रह के उसकी बात सुनने के लिए समय निकालें और बात सुने फिर वह चाहे आपका अपना बच्चा, साथी, सहकर्मी, घर में काम करने वाला या अनजान कोई क्यों न हो। लोगों को विश्वास दिलायें कि आप हो, जिससे वो अपनी परेशानी बता सकता है। ठीक ऐसा ही जब आपको दु:ख या परेशानी हो तो किसी से बात करें। कभी—कभी केवल इतने मात्र से ही बहुत हद तक समाधान हो जाता है, लेकिन यदि फिर भी बात न बने तो किस विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक की सलाह लें। आत्महत्या के साथ ही आपके या आपके आसपास किसी के व्यवहार में कोई परिवर्तन दिखें या कोई परेशानी समझ आये तो बिना झिझक मनोचिकित्सक से संपर्क करें।
शरीर के स्वास्थ्य के लिए हम जिस प्रकार अच्छा खाना और व्यायाम करते हैं ठीक वैसे ही मन के स्वास्थ्य के लिए प्रेरणादायक और सकारात्मक साहित्य का अध्ययन करें। हम जब मानसिक रूप से स्वास्थ्य और प्रसन्न होंगे तब ही स्वस्थ शरीर, स्वस्थ समाज और स्वस्थ राष्ट का निर्माण कर पायेंगे।