शाब्दिक दुर्व्यवहार (Verbal Abuse) एक प्रकार का भावनात्मक दुर्व्यवहार है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति को गहरी बेइज्जती, अपमान या डर का अहसास कराया जाता है। उदाहरण के तौर पर, बचपन में माता-पिता द्वारा की गई कठोर बातें या किशोरावस्था में साथियों द्वारा की गई आलोचनात्मक बातें, युवावस्था में उदासी, चिंता, गुस्सा, आत्महत्या के विचार, अस्थिर व्यवहार या नशे की आदतों का कारण बन सकती हैं। शोध में पाया गया है कि शाब्दिक दुर्व्यवहार मस्तिष्क के विकास पर भी असर डाल सकता है। यह मस्तिष्क के सफेद पदार्थ (white matter) की संरचना को कमजोर करता है, मस्तिष्क के हिस्सों के बीच जुड़ाव (functional connectivity) को कम करता है, और ग्रे मैटर (gray matter) की मात्रा घटाता है। ये मस्तिष्क के वे हिस्से हैं जो भावनाओं को नियंत्रित करने, सामाजिक संपर्क, भाषा और याददाश्त से जुड़े होते हैं।
हाइपर क्रिटिकलिटी का मतलब होता है दूसरों या चीजों की बहुत ज़्यादा या बार-बार आलोचना करना। उदाहरण के लिए – एक ज़रूरत से ज़्यादा आलोचना करने वाला बॉस या एक बहुत ही आलोचनात्मक फिल्म समीक्षा ।
आलोचनात्मक परिवार और दुर्व्यवहार
कई परिवारों में माता-पिता शाब्दिक दुर्व्यवहार को यह कहकर सही ठहराते हैं कि यह बच्चे के व्यवहार या स्वभाव में मौजूद “कमियों” को सुधारने के लिए जरूरी है। अत्यधिक आलोचना बारीक गलतियों को पकड़कर उनका बड़ा मुद्दा बनाना को यह कहकर जायज ठहराया जाता है कि इससे बच्चा “अहंकारी नहीं बनेगा,” “अपनी सफलता से घमंडी नहीं होगा,” “विनम्रता सीखेगा,” या “मजबूत बनेगा” हालांकि ये तर्क सिर्फ बहाने होते हैं। शाब्दिक दुर्व्यवहार में चिल्लाना जरूरी नहीं होता। यहां तक कि शांत स्वर में कही गई बार-बार की आलोचना भी बच्चे को गहराई तक प्रभावित करती है।
बच्चा इन बातों को सच मानने लगता है और अपने व्यक्तित्व को “खराब” समझने लगता है। यह उसे यह विश्वास दिलाता है कि वह ध्यान और समर्थन का पात्र नहीं है क्योंकि उसमें ऐसी “कमियां” हैं जिन्हें बार-बार बताया गया है। इस तरह की अत्यधिक आलोचना बच्चे के आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान और उसकी योग्यता पर भरोसे को गहरा नुकसान पहुंचाती है। वह खुद को पसंद करना और अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना मुश्किल समझने लगता है।
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वयस्क संबंधों में दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति भी अपने आलोचनात्मक व्यवहार को सही ठहराने की कोशिश करता है। लेकिन यहां आलोचना किसी एक कार्य (जैसे बजट का पालन न करना, समय पर न आना या घर के काम में मदद न करना) से हटकर व्यक्ति की निजी विशेषताओं पर केंद्रित हो जाती है। आलोचना सीधे व्यक्ति के चरित्र पर हमला करती है, जैसे “तुम हमेशा ऐसा करते हो” या “तुम कभी ये नहीं करते।” अत्यधिक आलोचना के कारण पीड़ित व्यक्ति हमेशा सतर्क रहता है और डर में जीता है कि कहीं कोई गलती न हो जाए, जिससे उसकी और आलोचना हो। यह मानसिक रूप से बेहद हानिकारक है।
शारीरिक और भावनात्मक दर्द का गहरा संबंध
यह बात लंबे समय से समझी गई है कि शारीरिक और भावनात्मक दर्द के बीच गहरा संबंध है, और यह हमारे भाषा में भी झलकता है। हम कहते हैं कि हमारा “दिल टूट गया है,” हम “भावनात्मक चोट” या “गहरे कटाव” की बात करते हैं। विज्ञान भी यह साबित करता है कि यह संबंध सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि असल है। शोध बताते हैं कि शारीरिक और भावनात्मक दर्द के लिए मस्तिष्क में एक ही सर्किट्री काम करती है। नाओमी एल. आइजनबर्गर के एक प्रयोग में देखा गया कि सामाजिक अस्वीकृति (social rejection) ने वही न्यूरल सर्किट सक्रिय किया जो शारीरिक दर्द के दौरान सक्रिय होता है।
इसी तरह, एथन क्रॉस और उनके साथियों के एक अध्ययन में पाया गया कि जब हाल ही में किसी व्यक्ति को उसके प्रेमी/प्रेमिका ने छोड़ दिया हो और उसे अपने पूर्व साथी की फोटो दिखाई जाए या उसकी बांह पर गर्मी दी जाए, तो मस्तिष्क के वही क्षेत्र सक्रिय होते हैं। सामाजिक अस्वीकृति सचमुच दर्द देती है। शाब्दिक दुर्व्यवहार (verbal abuse) इसी सामाजिक अस्वीकृति का भाषा में अभिव्यक्त रूप है।
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शाब्दिक दुर्व्यवहार का मनोवैज्ञानिक प्रभाव
शाब्दिक दुर्व्यवहार से प्रभावित व्यक्ति में अस्वीकृति की संवेदनशीलता, आत्म-सम्मान की कमी, और चिंता से भरा लगाव (anxious attachment) विकसित हो सकता है। वह अपने विचारों में बार-बार दुर्व्यवहार के बारे में सोचता है जिससे अवसाद का खतरा बढ़ जाता है। यह सब तब भी होता है जब वह बाहरी दुनिया में सफल और उच्च प्रदर्शन करने वाला हो। शाब्दिक दुर्व्यवहार का प्रभाव ऐसे है जैसे पानी में फेंके गए पत्थर से लहरें उठती हैं। दुर्व्यवहार का सीधा प्रभाव होता है जिससे गहरा भावनात्मक दर्द होता है। आमतौर पर यह बार-बार होने वाला व्यवहार होता है, जिससे बच्चे को न केवल दर्द का सामना करना पड़ता है बल्कि वह बचने के लिए मुकाबला करने के तरीके (coping mechanisms) विकसित करता है, जो अक्सर गलत या हानिकारक होते हैं।
शाब्दिक दुर्व्यवहार का शिकार बच्चा अपनी भावनाओं को संभालने और खुद को शांत करने में पहले से ही कमजोर होता है। बच्चे आमतौर पर यह कौशल संवेदनशील और जुड़े हुए माता-पिता की मदद से सीखते हैं, लेकिन शाब्दिक दुर्व्यवहार करने वाले माता-पिता इस प्रक्रिया में पूरी तरह असंवेदनशील होते हैं। परिणामस्वरूप, बच्चा लगातार भय, शर्म, चोट या गुस्से की भावनाओं में डूबा रहता है और उन्हें समझ या संभाल नहीं पाता। आखिरकार, इन आलोचनात्मक और शर्मिंदा करने वाले शब्दों का बच्चे के व्यक्तित्व, आत्म-सम्मान, और व्यवहार पर गहरा असर पड़ता है। यह “आत्म-आलोचना” (self-criticism) को जन्म देता है, जो गंभीर मामलों में आत्म-घृणा में बदल सकती है। इस मानसिकता का शिकार व्यक्ति हर असफलता या गलती को अपने चरित्र की स्थायी कमी मानने लगता है। जैसे, “मैं असफल हुआ क्योंकि मैं बेवकूफ और बेकार हूं,” या, “कोई मुझे कैसे प्यार कर सकता है?”
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शाब्दिक दुर्व्यवहार और पारिवारिक वातावरण
शाब्दिक दुर्व्यवहार और आक्रामकता कभी अकेले नहीं होते; ये पूरे परिवार के वातावरण को जहरीला बना देते हैं। जिन वयस्कों ने बचपन में शाब्दिक दुर्व्यवहार सहा है, वे अक्सर बताते हैं कि उनके भाई-बहन भी उन्हें तंग करते थे या उन्हें बलि का बकरा बना देते थे। वे यह भी याद करते हैं कि उनके पिता चुपचाप खड़े रहते थे, जबकि उनकी मां बार-बार उन्हें अपमानित और दरकिनार करती थीं। इस तरह का पारिवारिक माहौल बच्चों को भावनात्मक और सामाजिक रूप से कमजोर बना सकता है और उनके पूरे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
शाब्दिक दुर्व्यवहार के प्रकार
शाब्दिक दुर्व्यवहार कई रूपों में होता है, और इसे पहचानना मुश्किल हो सकता है क्योंकि यह कोई दिखने वाले निशान नहीं छोड़ता और अक्सर बहुत सूक्ष्म होता है। अक्सर, शाब्दिक दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति अपने व्यवहार को इस तरह से ढालते हैं कि दूसरे को यह सामान्य लगने लगे। इससे पीड़ित व्यक्ति इस दुर्व्यवहार को पहचानने में कठिनाई महसूस कर सकता है। यहां शाब्दिक दुर्व्यवहार के कुछ सामान्य प्रकार बताए गए हैं:
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1. अनदेखी करना और भ्रमित करना (Discounting और Gaslighting)
- अनदेखी करनाः किसी के विचारों, भावनाओं या अनुभवों को खारिज करना।
- उदाहरणः
■ “तुम्हें मजाक समझ नहीं आता ।”
■ “तुम बेवजह ड्रामा करते हो।”
- उदाहरणः
इससे पीड़ित व्यक्ति अपनी वास्तविकता पर सवाल उठाने लगता है और सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाता।
- गैसलाइटिंगः घटनाओं को झुठलाना या उन्हें इस तरह से बदलकर बताना कि दूसरा व्यक्ति अपनी स्मृति या समझदारी पर शक करने लगे।
2. आलोचना करना (Judging)
- यह बार-बार नकारात्मक टिप्पणियां करना है, जो किसी के आत्मसम्मान पर चोट करती हैं।
- उदाहरणः
• “तुम बेवजह परेशान हो जाते हो।”
• “तुम्हारी सोच बहुत नकारात्मक है।”
• “लोग तुम्हें पसंद नहीं करते।”
- उदाहरणः
3. दोष देना (Blaming)
- किसी पर उन चीजों के लिए दोष लगाना, जो उसके नियंत्रण में नहीं हैं।
- उदाहरणः
■ “तुम्हारी वजह से मुझे प्रमोशन नहीं मिला।”
■ “तुम्हारी वजह से मेरी बदनामी हुई।”
■ “तुमने मेरी पढ़ाई खराब कर दी।”
- उदाहरणः
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4. अस्वास्थ्यकर बहस (Unhealthy Arguments)
बहस के दौरान चिल्लाना, धमकाना, या अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना। ऐसी बहसें अक्सर हिंसक और नियंत्रित करने वाली हो जाती हैं।
5. जानबूझकर दूरी बनाना (Withholding)
अपनी भावनाओं, विचारों, या जानकारी को साझा करने से इनकार करना। इसमें “साइलेंट ट्रीटमेंट” देना शामिल है, जैसे बात न करना, कॉल और मैसेज का जवाब न देना।
6. धमकियां देना (Threats)
किसी को डराने या नियंत्रित करने के लिए धमकी देना।
- उदाहरणः
■ “अगर तुमने मुझे छोड़ा, तो मैं खुद को नुकसान पहुंचाऊंगा।”
■ “अगर तुम ऐसा करोगे, तो मैं तुम्हारे कुत्ते को बाहर निकाल दूंगा ।”
7. छोटा दिखाना और कमजोर करना (Trivializing और Undermining)
किसी की राय, रुचि, या पसंद को बार-बार महत्वहीन बताना।
- उदाहरणः
■ “तुम्हारी नौकरी में क्या ही खास है, देर हो भी गई तो क्या?”
■ “तुम्हारी पसंद सच में बेकार है।”
References +
Yun, J., Shim, G., & Jeong, B. (2019). Verbal abuse related to Self-Esteem damage and unjust blame harms mental health and social interaction in college population. Scientific Reports, 9(1). https://doi.org/10.1038/s41598-019-42199-6
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